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________________ करुणा और मैत्रीभाव से बढ़कर कोई शुभचिन्तक नहीं है। क्षमा, दया, सर्वधर्म सद्भाव आज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामाजिक दायित्व है, सहअस्तित्व का आधार है। जोइन्दु आदि जैन मर्मी साधकों और कवियों की इस विचार-भाव-ज्योति के सिवा आज के जीवन की रक्षा के लिए दूसरा चारा नहीं है। पुष्पदंत्त द्वारा प्रयुक्त भाषा में तत्सम, तद्भव देशी शब्दावली का समुचित विन्यास उपलब्ध होता है। अपभ्रंश की अधिकांश रचनाओं में जो तद्भवीकरण की अनावश्यक प्रवृत्ति परिलक्षित होती है वह प्रवृत्ति 'जसहरचरिउ' में नहीं है। कवि ने प्रायः ऐसे शब्दों को यथावत् ग्रहण करने का प्रयास किया है जिनका उच्चारण लोक के लिए सरल है। मंदिर, धूम, सरस, रमणी, संसारसरणि, फणिबद्ध, किंकर, सलिल, चारु देवी आदि तत्सम शब्द उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किये जा सकते हैं। अपभ्रंश तक ध्वनि-परिवर्तन के कारण संस्कृत शब्दों का जो रूप प्रचलित हो गया था कवि ने उसे विशेष स्थान दिया है। प्रकृति, काव्य-शास्त्र, राजनीति आदि अनेक क्षेत्रों से बिम्ब का चयन करके कवि अपनी कल्पना शक्ति के साथ ही जीवन के विस्तृत अनुभवों का भी परिचय देता है। प्रकृति, नगरवर्णन तथा ग्राम्य-चित्रण में कवि अपनी मौलिक उद्भावना से ऐसे उपमानों का विधान करता है कि पाठक एकदम से नये धरातल पर पहुँचकर नये अनुभव से सम्पृक्त हो उठता है। स्वयंभू ने अपनी रचना-प्रक्रिया की कुशलता के समृद्ध, समर्थ और उत्कृष्ट बिम्बों के निर्माण में अपनी अपूर्व काव्यशक्ति का परिचय दिया है। बिम्ब-विधान मानवीकरण का ही पर्याय है और महाकवि (स्वयंभू) के नागर बिम्बों में मानवीकरण की प्रचुरता है। आचार्य कवि स्वयंभू को अप्रस्तुत योजना के माध्यम से बिम्ब सौन्दर्य के मुग्धकारी मूर्तन में पारगामी दक्षता प्राप्त है । अर्थबिम्ब और भावबिम्ब के समानान्तर उद्भावना में महाकवि की द्वितीयता नहीं है। महाकवि स्वयंभू की काव्यभाषा में काव्य शाश्वतिक गुण बिम्ब सौन्दर्य प्रचुर मात्रा में सुरक्षित संदेशरासक का दोहा नवीनतायुक्त तो है ही मधुर शब्दों के चयन और चित्रों के सूक्ष्म रूपायन में समर्थ भी है। छन्दों की विविधता, वस्तु की अभिव्यक्ति शैली, विशेषकर नायिका का वाग्वैदग्ध हमें सूरदास की सामर्थ्य की याद दिलाता है। मार्मिकता, संयम और सहृदयता भी इस रचना की शक्ति है। परम्परागत होते हुए भी उनके उपमान हृदयस्पर्शी हैं। और इन सबसे महत्वपूर्ण है रचनाकार की स्वाभाविकता जो प्रभाव साम्य उपमानों की खोज में सक्रिय है। पारंपरिक चयन के विपरीत संदेशरासक अपने नायक और नायिका का चयन सामान्यजन की . कथा-व्यथा से कर अपनी रचना का आधार बनाता है। जिन विद्वानों ने अपने लेख भेजकर हमें सहयोग प्रदान किया है हम उनके आभारी हैं और भविष्य में भी इस प्रकार के सहयोग की अपेक्षा करते हैं। हम संस्थान समिति, सम्पादक-मण्डल एवं सहयोगी कार्यकर्ताओं के प्रति भी आभारी हैं। मुद्रण हेतु जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि. जयपुर धन्यवादाह है। डॉ. कमलचन्द सोगाणी
SR No.521853
Book TitleApbhramsa Bharti 1993 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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