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सम्पादकीय भारत विभिन्न भाषाओं का देश है। यहाँ अति प्राचीनकाल से ही सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के लिए लोक-भाषा में साहित्य लिखा जाता रहा है। अपभ्रंश अपने समय की विशिष्ट लोकभाषा बनी। ईसा की छठी शताब्दी में अपभ्रंश भाषा साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए सशक्त माध्यम हो गई थी। साहित्यरूपों की विविधता और वर्णित विषय-वस्तु की दृष्टि से अपभ्रंश साहित्य बड़ा ही समृद्ध एवं मनोहारी है। विद्वान लेखकों ने इस अंक में इन्हीं साहित्यरूपों की विविधता एवं अपभ्रंश के कवियों द्वारा वर्णित विषय-वस्तु का विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार किया है। ___ यहाँ यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि हिन्दी साहित्य के आरम्भिक तीनों कालों पर तो अपभ्रंश का प्रभाव विशेषरूप से पड़ा ही है, किन्तु इस प्रभाव से आधुनिक काल भी नहीं बच पाया है। हिन्दी के प्रायः सभी काव्यरूप किसी न किसी रूप में अपभ्रंश से प्रभावित हैं। अपभ्रंश के अनेक काव्यरूप, काव्यशैलियां हिन्दी में भी विकसित हुई। हिन्दी में काव्य के लिए चरित शब्द का प्रयोग अपभ्रंश से ही आया है। हिन्दी का मात्रिक छन्द और तुकान्त शैली अपभ्रंश की ही देन है।
जोइंदु ने अपने काव्य में कतिपय ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जो अपभ्रंश साहित्य में सर्वथा नवीन तो हैं ही, विलक्षण भी हैं । आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के विकास में जोइंदु की भाषा प्रमाण-स्वरूप प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण है। जिन देशी शब्दों का मूल अभी तक नहीं खोजा जा सका है, संभव है उन्हें जोइंदु की अपभ्रंश की सहायता से खोजने में सफलता प्राप्त हो। ___अपभ्रंश काव्य में रहस्यवाद की अभिव्यक्ति की मूल प्रेरणा जैन मुनियों की शान्तरसमयी ध्यान-दशा तथा बौद्ध-सिद्धों की अनूठी मादनमयी "महासुखानुभूति" से अनुप्राणित है। जैन अपभ्रंश काव्य में रहस्यवाद का स्वतः अधिकांशत: बोधपरक रहा है और बौद्ध सिद्धों की वाणियों में सहजानन्दपरक, जिसकी अनुभूति अनेक अटपटे बिम्बों एवं प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यञ्जित हुई है। इसीलिए अपभ्रंश के जैन कवियों की रहस्यभावना में आध्यात्मिक सन्देश की प्रवृत्ति रही है और बौद्ध-सिद्ध कवियों के रहस्यवाद में लोकोत्तर ऐकान्तिक सहजानन्दानुभूति के उद्दाम उन्मेष की। ____अपभ्रंश की रहस्यवादी काव्यधारा की एक मौलिक विशेषता यह रही है कि उसमें सन्तों, सूफियों एवं वैष्णवों के रहस्यवाद में व्याप्त विरह-वेदना की छाप नहीं है। जैन अपभ्रंश कवियों द्वारा प्रतिपादित रहस्यवाद में सभी अन्य साधना प्रणालियों एवं मान्यताओं के प्रति उदारता है। अपनी विशिष्ट संसिद्धियों एवं संश्लिष्ट अभिव्यंजनाओं से अनुरंजित मौलिक उद्भावनाओं के कारण अपभ्रंश काव्य की रहस्यवादी धारा भारतीय वाङ्मय की अनूठी निधि है। ____ अमृततत्वों को सही भाषा, सही रास्ते और बेहद ईमानदारी से खोजने का श्रेय अपभ्रंश के मर्मी जैन सन्त कवियों को ही जाता है। अपभ्रंश के इन मर्मी सन्त कवियों ने पहली बार जनता के लिए जनभाषा में जनता के साथ होकर कहा, लिखा। इसलिए उनकी अनुभूति में सच्चाई का दम है, ईमानदारी की ताकत है।