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प्रकाशकीय अपभ्रंश भारती का तृतीय-चतुर्थ अंक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है।
यह कहना युक्तियुक्त है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास की आदिकालीन व मध्ययुगीन प्रवृत्तियों का प्रधान प्रेरणा-स्रोत अपभ्रंश साहित्य रहा है। काव्य-रूपों और काव्य-विषयों के अध्ययन के लिए राष्ट्रभाषा हिन्दी व आर्य भाषाओं के विकास-क्रम के ज्ञान के लिए अपभ्रंश साहित्य की उपयोगिता असंदिग्ध है।
अपभ्रंश साहित्य के सांस्कृतिक महत्व को समझते हुए ही दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा अपभ्रंश साहित्य अकादमी विभिन्न गतिविधियों के साथ संचालित है। अपभ्रंश भाषा के अध्ययन-अध्यापन के लिए अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम व अपभ्रंश डिप्लोमा पाठ्यक्रम निःशुल्क चलाये जा रहे हैं और इसी के क्रम में अपभ्रंश रचना सौरभ, अपभ्रंश काव्य सौरभ आदि पाठ्यपुस्तकें प्रकाशित हैं।
'अपभ्रंश भारती' पत्रिका का प्रकाशन अपभ्रंश भाषा और साहित्य के पुनरुत्थान व प्रचार के लिए उठाया गया एक कदम है। विद्वानों द्वारा अपभ्रंश साहित्य पर की जा रही शोध-खोज को 'अपभ्रंश भारती' के माध्यम से प्रकाशित करना हम अपना कर्त्तव्य समझते हैं। इस अंक में अपभ्रंश साहित्य के विविध पक्षों पर विद्वान लेखकों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। हम उन सभी के प्रति आभारी हैं। । ___पत्रिका के सम्पादक, सहयोगी सम्पादक एवं सम्पादक मण्डल धन्यवादाह हैं। इस अंक के मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर भी धन्यवादाह है।
कपूरचन्द पाटनी मंत्री
नरेशकुमार सेठी
अध्यक्ष
प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी