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अपभ्रंश-भारती-3-4
जनवरी-जुलाई-1993
जसहरचरिउ की काव्यभाषा
- डॉ. रामकिशोर शर्मा
महाकवि पुष्पदंत द्वारा रचित जसहरचरिउ एक श्रेष्ठ कथा काव्य है। कवि ने महापुराण तथा णायकुमारचरिउ की रचना करने के बाद जसहरचरिउ का सृजन किया था, इसलिए प्रस्तुत कृति का अधिक प्रौढ़ होना स्वाभाविक है। अर्थ और काम से सम्बद्ध काव्य की परम्परा से असंतोष व्यक्त करते हुए कवि पुष्पदंत धार्मिक काव्य की रचना हेतु अपना तर्क प्रस्तुत करते हैं -
चिंतइ य हो धणणारीकहाए, पज्जत्तउ कयदक्कियपहाए। कह धम्मणिबद्धी का विकहमि, कहियाइं जाई ण सिवसोक्खुलहमि॥
(1.1.5-6) पाप का प्रभाव बढ़ानेवाली धन और नारी की कथाएँ बहुत हो चुकीं। अतएव अब मैं ऐसी धर्म-सम्बन्धी कथा कहूँ जिससे हमें शिव-सुख (मोक्ष) प्राप्त हो सके। चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति के बाद पुष्पदंत जसहर (यशोधर) चरित कुल चार सन्धियों में प्रस्तुत करते हैं।
कवि जिस मोक्षदायिनी कथा के प्रस्तुतिकरण का संकल्प आत्म मोक्षार्थ करता है वह संस्कृत-प्राकृत से भिन्न तत्कालीन जनभाषा अपभ्रंश में निबद्ध होने के कारण व्यापक समाज की मंगल कथा बन जाती है। यशोधर की चरितात्मक कथा कवि की कल्पना-प्रसूत कथा नहीं है बल्कि यह पूर्व प्रचलित कवि-विश्रुत कथा है। इस कथा को लेकर संस्कृत और प्राकृत में अनेक ग्रंथ पहले ही लिखे जा चुके थे। महाकवि पुष्पदंत ने संस्कृत-प्राकृत को छोड़कर भाषा