________________
68
अपभ्रंश-भारती-3-4
1. विभक्तिवाले प्रयोग 2. परसर्गयुक्त प्रयोग।
विभक्ति-प्रयोग में ही द्वितीया एवं सप्तमी के प्रयोगों में कुछ वैशिष्ट्य परिलक्षित होता है। यथा -'आयाई' अर्थात् 'आपत्ति में (पद्य-6), इसमें 'ई' प्रत्यय का प्रयोग सप्तमी अर्थ में हुआ है। इसी प्रकार 'धंधई' (पद्य -7) में भी 'ई' प्रत्यय सप्तमी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। जबकि (पद्य 5) 'हियडई', (पद्य-7) 'कम्मई' में यही प्रत्यय द्वितीया के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इसी प्रकार एक ही पद्य में 'ई' प्रत्यय का सप्तमी और द्वितीया दोनों के अर्थ में भी प्रयोग प्राप्त होता है (पद्य-47)। पद्य-70 में 'मत्थई सिंगई होंति' अर्थात् माथे पर सींग होते हैं इस वाक्य में 'मत्थई' शब्द में सप्तमी प्रयोग, सिंगई' में द्वितीया प्रयोग निष्पन्न हुआ है तथा वट्टडिया' अर्थात् 'मार्ग पर' विशिष्ट सप्तमी प्रयोग है।
विभक्ति के अतिरिक्त शब्द के प्रत्ययसहित परसर्ग के प्रयोग भी इसमें प्राप्त होते हैं। यथा - पद्य-36 में - 'कम्महं केरउ' में 'कम्महं' शब्द में 'हं' प्रत्यय प्रयोग होने के उपरान्त भी 'केरउ' इस षष्ठी-अर्थक परसर्ग का प्रयोग हुआ है। धातुरूप-प्रयोग ___ शब्दरूपों की अपेक्षा क्रियापदों (धातुरूपों) में अधिक वैविध्य प्राप्त होता है। जैसे - 'फिट्टइ' (पद्य-2) यह एक विशिष्ट क्रियापद है। इसी प्रकार 'वडवडई' अर्थात् बड़बड़ाता है (पध-6) जैसे लोक-जीवन के क्रियापद भी प्राप्त होते हैं। क्रिया के वैशिष्ट्य के अतिरिक्त क्रियारूपों के वैशिष्ट्य भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। यथा - 'मुक्की' अर्थात् छोड़ देता है (पद्य-15) में अनियमित क्रिया प्रयोग है। 'झखाई' अर्थात् संताप पहुंचा (पद्य-131) में विशिष्ट-क्रियापद का प्रयोग प्राप्त होता है।
निषेधात्मक क्रियापद प्रयोगों में भी कहीं-कहीं छन्द के अनुरोध से और कहीं-कहीं सहज ही वैविध्य प्राप्त होता है। यथा - क्रियापद के साथ निषेध-सूचक'मा' उपपद का प्रयोग किया जाता रहा है, किन्तु 'दोहा पाहुड' में 'मा' के स्थान पर 'मं' (पद्य-13) तथा 'म' (पद्य-17 म-वाहि-मतमार) इन उपपदों का प्रयोग प्राप्त होता है।
इसी प्रकार पद्य-155 में 'जंतउ-वारि' अर्थात् जाने से रोको यह आज्ञार्थक क्रिया-पद तथा उसी में 'भंजेसइ' अर्थात् भंग कर देगा व 'पडिसइ' (पड़ेगा), यह भविष्यतकालीन विशिष्ट क्रिया-प्रयोग है तथा पद्य-19 में सम्भावना-सूचक आसन्न भविष्य के अर्थ में 'विढप्पई' इस वर्तमान-कालिक क्रियापद का प्रयोग हुआ है। कृदन्त-प्रयोग _ 'दोहा-पाहुड' में क्रिया-स्थानीय कृदन्त प्रयोग भी वैविध्यपूर्ण उपलब्ध हैं। यथा - 'आभुंजंता' (पद्य-4) में 'आङ्' उपसर्गपूर्वक, वर्तमानकालिक कृदन्त का प्रयोग बिल्कुल संस्कृत के समान ही हुआ है। तथा 'णिरत्थ गय' इसमें 'गय' इस भूतकालिक कृदन्त पद का यहाँ वर्तमान काल अर्थ में प्रयोग किया गया है।