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________________ अपभ्रंश-भारती-3-4 67 भणइ' यह वाक्य है जिससे स्पष्ट है कि 'रामसिंह' और 'योगीन्दु मुनि' एक ही व्यक्ति नहीं है तथा ग्रन्थकार ने अपने नाम के साथ जो 'मुणि' शब्द का प्रयोग किया है वह तो दीक्षा-उपरान्त ही नाम के साथ प्रयुक्त किया जाता है, किसी गृहस्थ-व्यक्ति के नाम के साथ यह शब्द (मुनि) नहीं लगाया जाता है। गहन अनुशीलन एवं अनुसंधान के पश्चात् हम इस निर्णय पर पहुंचते हैं कि मुनि रामसिंह और योगीन्दु एक ही व्यक्ति नहीं, दो भिन्न व्यक्ति हैं और दोनों में पर्याप्त समयभेद भी है। मुनि रामसिंह 'सावयधम्म दोहा' के रचयिता देवसेन (वि. सं. 990, 937 ई.) और 'शब्दानुशासन' के रचयिता हेमचन्द्र (सन् 1100) के बीच सन् 1000 ई. के लगभग हुए। इस तथ्य के साथ ही योगीन्दु के पक्ष में दिए गए दोहों के उद्धरण आदि प्रमाण भी स्वतः इस बात की पुष्टि करते हैं कि योगीन्दु मुनि रामसिंह के पूर्ववर्ती थे एवं 'दोहा पाहुड' की रचना के समय योगीन्दुकृत 'परमात्मप्रकाश, योगसार' आदि ग्रन्थ उनके समक्ष उपलब्ध थे। साथ ही योगीन्दु छठी शताब्दी ई. के विद्वान हैं और 'दोहा पाहुड' की रचना दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में हुई। यह तथ्य उगे हुए सूर्य की भांति यह स्वतः प्रमाणित करता है कि 'दोहा पाहुड' मुनि रामसिंह की ही रचना है। 'दोहा पाहुड' जैसी उत्कृष्ट अपभ्रंश साहित्यिक कृति पर भाषावैज्ञानिक दृष्टि से कोई विशेष कार्य आज तक सम्पादित नहीं हुआ है, अत: उसमें प्रयुक्त अपभ्रंश भाषा के भाषा-शास्त्रीय अध्ययन की प्राथमिक चेष्टा प्रस्तुत निबन्ध में की गयी है। अपभ्रंश के बारे में प्रथम उल्लेख महर्षि पतञ्जलि के महाभाष्य में प्राप्त होता है, वहाँ उन्होंने कहा है कि एक-एक शब्द के कई-कई अपभ्रंश हैं। इसके उपरान्त भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में कतिपय अपभ्रंश शब्दों का प्रयोग किया। किन्तु अपभ्रंश भाषा का साहित्यिक रूप पांचवीं शताब्दी से प्राप्त होता है और छठी शताब्दी से आचार्य जोइन्दु (योगीन्दु) के द्वारा अपभ्रंश साहित्य सुगठित रूप लेने लगा। आठवीं-नवीं शताब्दी तक यह क्रम चला। ___ अपभ्रंश भाषा एवं साहित्य का वास्तविक उत्कर्ष-काल ई. की 9वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी तक रहा। इस समय अपभ्रंश भाषा पूर्ण विकसित एवं सुगठित रूप ले चुकी थी तथा इसका साहित्य भी बहु-आयामी हो गया था, चूंकि मुनि रामसिंह का काल ई. की 10वीं-11वीं शताब्दी अनुमानित है, अत: स्पष्ट है कि मुनि रामसिंह के साहित्य में भी अपभ्रंश भाषा का रूप अपने उत्कर्ष युग के अनुरूप ही होना चाहिए। मुनि रामसिंह कृत 'दोहा पाहुड' में अपभ्रंश भाषा' का अनुशीलन निम्न प्रकार है - मुनि रामसिंह कृत 'दोहा पाहुड' में अपभ्रंश भाषा सम्मत शब्दरूपों एवं धातुरूपों के सामान्य प्रयोग तो प्राप्त होते ही हैं जो कि अपभ्रंश व्याकरण के निर्दिष्ट प्रयोगों के अनुसार ही हैं किन्तु कतिपय विशिष्ट प्रयोग भी इसमें प्राप्त होते हैं जिन्हें शब्दरूप, धातुरूप, कृदन्त, अव्यय, देशी शब्द तथा अन्य प्रयोग इन छ: वर्गों में विभाजित कर उनका संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है - शब्दरूप शब्दरूपों में दोनों तरह के प्रयोग अपभ्रंश व्याकरण के अनुसार 'दोहा पाहुड' में उपलब्ध हैं -
SR No.521853
Book TitleApbhramsa Bharti 1993 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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