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अपभ्रंश - भारती - 3-4
हैं तो कुछ विद्वानों ने इसे 'दोहा पाहुड' भी कहा है। प्रथम नामकरण के अनुसार 'पाहुड दोहों का' तथा अन्यानुसार 'दोहों का पाहुड' ऐसा सुगम एवं व्यावहारिक विग्रह निष्पन्न होता है। वैसे यदि जैन दर्शन के 'पाहुड' नामवाले ग्रन्थों का अवलोकन करें तो लगभग सम्पूर्ण 'पाहुड' - परम्परा में ग्रन्थों के नामकरण 'पाहुडान्त' हुए हैं, यथा समयपाहुड' व भावपाहुड (कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा रचित) इत्यादि । अतः 'पाहुड' ग्रन्थों की परम्परा एवं व्याकरण की संगति के अनुसार मुझे ग्रन्थ का नाम 'दोहा - पाहुड' अधिक सुसंगत प्रतीत होता है।
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ग्रन्थ के नामकरण के समान ही ग्रन्थकर्त्ता के बारे में भी पर्याप्त विवाद विद्वत- परम्परा में विद्यमान है । प्रमुख विवाद 'दोहा पाहुड' ग्रन्थ के जोइन्दु ( योगीन्दु) कृत होने का है किन्तु उपलब्ध प्रमाणों के गहन अध्ययन के उपरान्त मेरी यह स्पष्ट अवधारणा है कि दोहा पाहुड ग्रन्थ की रचना योगीन्दु ने नहीं, अपितु मुनि रामसिंह ने ही की है। इनमें सर्वप्रमुख प्रमाण है - मूलग्रन्थ, उसकी पुष्पिका में ग्रन्थकर्त्ता का नाम 'रामसीहमुणि' प्राप्त होता है।
'दोहा पाहुड'
'ग्रन्थ को योगीन्दु कृत कहने में विद्वानों के सामने तीन प्रमुख प्रमाण उपलब्ध
1. जोइन्दु (योगीन्दु) के ग्रन्थों के कई दोहे यथावत् रूप में अथवा किंचित् परिवर्तन के साथ 'दोहा पाहुड' में उपलब्ध हैं।
2. प्रस्तुत ग्रन्थ की कतिपय प्रतियों में ग्रन्थकार का नाम योगेन्द्र अथवा योगीन्द्र आया.
है ।
3. योगीन्दु के दो प्रमुख ग्रन्थों की भाषा एवं विषय का 'दोहा पाहुड' की भाषा एवं विषय से प्रचुर साम्य है। 10
विशेषत: उक्त तीन कारणों से ही विद्वानों ने 'दोहा पाहुड' को जोइन्दु (योगीन्दु) कृत माना है किन्तु निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर ये प्रमाण सबल प्रतीत होते हुए भी, अन्तिम रूप से निर्णायक सिद्ध नहीं हो पाते हैं .
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1. कोई भी ग्रन्थकार अपने द्वारा रचित दोहों की पुनरावृत्ति या पिष्टपेषण से बचना चाहता
है ।
2. लिपिकारों द्वारा दिए गए नाम कभी भी अन्तिम रूप से प्रमाण नहीं माने जा सकते हैं ।
3. अन्य ग्रन्थकार प्रायः पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों के ग्रन्थों के उद्धरण अथवा उनका यथावत् अनुसरण करते आये हैं तथा भाषा-शैली एवं विषयगत साम्य संयोगवश भी हो सकते हैं।
उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पूर्वोक्त तीन बिन्दुओं के आधार पर 'दोहा पाहुड' को योगीन्दु की रचना मानना उचित नहीं है ।
एक अन्य सम्भावना की ओर भी ध्यान जाता है कि मुनि रामसिंह और योगीन्दु मुनि एक ही व्यक्ति के दो नाम रहे हों।" रामसिंह पहले का नाम होगा और जब वे मुनि हो गये होंगे तो उनका नाम योगीन्दु मुनि हो गया होगा। लेकिन 'दोहा-पाहुड' ग्रन्थ में 'राम सीहुमुणि इम