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________________ अपभ्रंश - भारती - 3-4 जनवरी - जुलाई - 1993 65 मुनि रामसिंह कृत 'दोहा पाहुड' का भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण - श्रीमती आभारानी जैन आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं और पूर्व भारतीय आर्यभाषा की बीच की कड़ी का नाम 'अपभ्रंश' है । ऐतिहासिक दृष्टि से अपभ्रंश साहित्य का युग 7वीं ई. से 12वीं ई. तक माना जाता है, वैसे तो बोल-चाल के रूप में इस भाषा का उल्लेख काफी समय पहले से ही मिलता है।' व्याकरण की दृष्टि से अपभ्रंश का विश्लेषण प्राकृत के संदर्भ में हुआ क्योंकि वैयाकरण प्रायः उसे प्राकृत ही समझते थे। यह भी स्मरणीय है कि जिस प्रकार प्राकृत का व्याकरण संस्कृत के आधार पर लिखा जाता रहा है उसी प्रकार अपभ्रंश का प्राकृत के आधार पर। तथापि भारतीय साहित्य में अपभ्रंश भाषा का साहित्य ही एकमात्र ऐसा साहित्य है, जिसमें सृजन अत्यन्त विस्तृत रूप में हुआ, पर उसका अनुसंधान एवं प्रकाशन सृजन के समक्ष नगण्य प्राय: है । अत: इस विधा में अनुसंधान की प्रचुर सम्भावनाएं उपलब्ध हैं । अपभ्रंश भाषा के साहित्य में चरित्रकाव्य, कथाकाव्य आदि पारम्परिक विधाओं के अतिरिक्त स्फुट आध्यात्मिक रचनाओं को प्रायः 'दोहा संग्रहों' के नाम से जाना जाता है। यद्यपि उक्त स्फुट रचनाओं का दार्शनिक, आध्यात्मिक तथा भाषा-विज्ञान के दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है, लेकिन इन पर अभी तक कोई विशेष शोध-प्रबन्ध नहीं लिखा गया है। अपभ्रंश का ऐसा ही एक आध्यात्मिक ग्रन्थ 'पाहुड दोहा' या 'दोहा पाहुड' नाम से प्राप्त होता है । कतिपय विद्वान इसका नाम 'पाहुड दोहा' कह कर उसके विविध शब्दार्थ प्रस्तुत करते
SR No.521853
Book TitleApbhramsa Bharti 1993 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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