SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश-भारती-3-4 कल्लोलुल्लोलहिं उव्वहन्ति थोवन्तरें मच्छुत्थल्ल देन्ति । गोला-णइ दिट्ठ समुवहन्ति । सुंसुअर-घोर-घुरुघुरुहरन्ति । करि-मयरड्डोहिय-डुहुडुहन्ति । डिण्डीर-सण्ड-मण्डलिउ देन्ति । ददुरय-रडिय-दुरुदुरुदुरन्ति । कल्लोलुल्लोलहि उव्वहन्ति । उग्घोस-घोस-घवघवघवन्ति । पडिखळण-वलण-खलखलखलन्ति । खलखलिय-खलक्क-झनक्क देन्ति । ससि-सङ्ख-कुन्द-धवलोझरेण । कारण्ड्डड्डाधिय-डम्बरेण । पत्ता - फेणावलि-वङ्किय वलयालतिय णं महि-कुलवहुणअहें तणिय । जलणिहि-भत्तारहों मोत्तिय-हारहों वाह पसारिय दाहिणिय । -पउमचरिउ 31.3 थोड़ी दूर पर उन्हें (राम-लक्ष्मण को) मत्स्यों से उछाल देती हुई और बहती हुई गोदावरी नदी दिखाई दी। शिशु-मारों के घोर घुर-घुर शब्द से घुरघुराती हुई, गज और मगरों से आलोड़ित डुह-डुह करती हुई, फेनसमूह का मण्डल देती हुई, मेंढकों की रटन्त से टुर-टुर करती हुई, लहरों के उल्लोल से बहती हुई, उद्घोष के घोष से घब-घब करती हुई प्रतिस्खलन और मुड़ने से खल-खल करती हुई, जिसने हंसों को उड़ाने का आडम्बर किया है, ऐसे चन्द्र, शंख और कुन्द पुष्प के समान धवल निर्झर से स्खलित चट्टानों को झटका देती हुई, जिसके पास मोती का हार है, ऐसे समुद्ररूपी पति के लिए प्रसारित फेनावलि से वक्र तथा वलय से अंकित जो मानो धरतीरूपी कुलवधू की दायीं बाँह हो । - अनु. डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन
SR No.521853
Book TitleApbhramsa Bharti 1993 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy