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________________ अपभ्रंश-भारती-3-4 ___63 ज्यों की त्यों सुरक्षित हैं। शायद ही किसी प्रान्तीय साहित्य में ये सारी की सारी विशेषताएं इतनी मात्रा में और इस रूप में सुरक्षित हों। यह सब देखकर यदि हिन्दी को अपभ्रंश साहित्य से अभिन्न समझा जाता है तो इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता। इन ऊपरी साहित्यरूपों को छोड़ भी दिया जाय तो भी इस साहित्य की प्राणधारा निरविच्छिन्न रूप से परवर्ती हिन्दी साहित्य में प्रवाहित होती रही है। · · · · प्रकृत यही है कि इन साम्यों को देखकर यदि हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखकों ने अपभ्रंश साहित्य को हिन्दी साहित्य का मूल रूप समझा तो ठीक ही किया। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि हिन्दी साहित्य के किसी भी पक्ष, जैसे- काव्य रूपों, काव्य पद्धतियों, भाव पक्ष और कला पक्ष देखें तो उनमें सर्वत्र ही अपभ्रंश का प्रभाव थोड़ाबहुत अवश्य देखने को मिल जायेगा।"हिन्दी एक जीवन्त भाषा है और वह अपभ्रंश की जीवन्त प्राणधारा तथा परम्परा को लेकर चली है। उसमें अपभ्रंश साहित्य की उद्धरणीमात्र प्रस्तुत नहीं की गई है। उसमें हिन्दी के साहित्यकार की विकासोन्मुख प्रतिभा, अपना ही पुट है जो कि सर्वथा अभिनन्दनीय है।" 1-2. हिन्दी भाषा का इतिहास, डॉ. लक्ष्मी लाल वैरागी, पृ. 15-16, संघी प्रकाशन, 53, बापू बाजार, उदयपुर 3130011 3. हिन्दी साहित्य का इतिहास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, पृ. 12, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी। 4. वही 5. हिन्दी उपन्यास (ऐतिहासिक अध्ययन), डॉ.शिवनारायण श्रीवास्तव, पृ. 13, प्रकाशक, सरस्वती मन्दिर, जतनबर, वाराणसी के आधार पर। 6. हिन्दी साहित्य युग और प्रवृत्तियाँ, डॉ. शिवकुमार शर्मा, पृ. 51-52, अशोक प्रकाशन, नई सड़क, दिल्ली -6। 7. हिन्दी साहित्य युग और प्रवृत्तियाँ, डॉ. शिवकुमार शर्मा, पृ. 51-52, अशोक प्रकाशन, नई सड़क, दिल्ली -61 प्रवक्ता व अध्यक्ष हिन्दी विभाग कश्मीर विश्वविद्यालय श्रीनगर (कश्मीर)
SR No.521853
Book TitleApbhramsa Bharti 1993 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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