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अपभ्रंश-भारती-3
महाकवि अपनी भावयित्री और कारयित्री प्रतिभा के प्रदर्शन में काव्यानुभूति को ईमानदार से अभिव्यक्त करते हैं। निवृत्तिमार्गी आचार्योचित कुण्ठा उनके महाकवि को पराभूत नहीं क पाती है। इस सन्दर्भ में उनके द्वारा विकुण्ठ भाव से उद्भावित रामपुरी के रूपकाश्रित समासोक्ति बिम्ब की आपातरमणीयता द्रष्टव्य है -
पुणु रामउरि पघोसिय लोएं । णं णारिहें अणुहरिय णिओएं॥ दीहर-पंथ-पसारिय-चलणी । कुसुम-णियत्थ-वत्थ-साहरणी॥ खाइय-तिवलि-तरंग-विहूसिय । गोउर-थणहर-सिहर-पदीसिय॥ विउलाराम-रोम-रोमंचिय । इंदगोव-सय-कुंकुम-अंचिय॥ गिरिवर-सरिय-पसारिय-वाही । जल-फेणावलि-वलय-सणाही॥ सरवर-णयण-घणंजण-अंजिय। सुरधनु-भउह-पदीसिय-पंजिय॥ देउल-वयण-कमलु-दरिसेप्पिणु।वर-मयलंछण-तिलउ छुहेप्पिणु॥ णाइँ णिहालइ दिणयर-दप्पणु। एम विणिम्मउ सयलु वि पट्टणु॥
(28.5.1-9) अर्थात् गजमुखयक्ष द्वारा प्रचुर धन, स्वर्ण और जन से परिपूर्ण जिस नगरी का आधे पल में निर्माण किया, उसे लोगों ने 'रामपुरी' घोषित किया। रचना की दृष्टि से वह नगरी नारी की तरह प्रतीत होती थी। उस नगरी के रास्ते उस नारी के फैले हुए या पसारे हुए पैर थे; भरपूर खिले हुए फूल-रूपी वस्त्रों से वह आवृत थीं, खाई-रूपी त्रिवलि-तरंगों से विभूषित थी। वह नागरी नारी अपने गोपुर-रूप स्तन-शिखरों का प्रदर्शन कर रही थी, विपुल उद्यान-रूप रोमराजियों से वह पुलकित थी; सैकड़ों इन्द्रगोप उसके कुंकुम-बिन्दु की तरह सुशोभित थे। पहाड़ी नदियाँ उस नागर नारी की पसारी हुई बाँहें थीं; फेनिल नदी जल का आवर्त ही उसकी गहरी नाभि थी। उस नागर नारी के सरोवर-रूपी नेत्र गाढ़े अंजन से अंजित थे; इन्द्रधनुष-रूप उसकी भौंहें अंजन की कालिमा प्रकट कर रही थीं; देवकुल ही उसके मुखकमल थे। उस नागर नारी का भाल चन्द्रमा-रूप तिलक से अंकित था; वह दिनकर-रूपी दर्पण देखती थी। इस प्रकार यक्ष ने उस नगरी का अद्भुत निर्माण किया था। ___ यथावर्णित रामपुरी की सर्वालंकार भूषिता पीनस्तनी प्रौढ़ नायिका के रूप में सावयव कल्पना प्रज्ञाप्रौढ़ महाकवि के रूप-चित्रण की सुतीक्ष्ण सूक्ष्मेक्षिका की सूचना देती है। अवश्य ही .. महाकवि ने रामपुरी की वास्तु-समृद्धि का चित्रण करते हुए अतिशय और चमत्कारपूर्ण मानवीकरणमूलक आकर्षक चाक्षुष बिम्ब की योजना की है। सातिशय सुन्दरी नारी को मूर्तित करने में महाकवि ने अपनी वर्णन-विच्छित्ति की प्रौढ़ता के साथ ही भाषा की सर्वोत्तम शक्ति का भी परिचय दिया है। रूप-श्रृंगार के उपकरणमूलक बिम्ब-विधान में महाकवि ने इच्छित चित्र की चाक्षुष विशिष्टताओं को अंकित करने के लिए इन्द्रधनुषी बिम्बों का सर्वाधिक प्रयोग किया है, जिसमें उसके गम्भीर वर्ण-परिज्ञान का निदर्शन उपलब्ध होता है। सौन्दर्यानुभूति के वेष्टन में प्रकृति के कोमल और आह्लादकारी पक्षों के उपस्थापन में महाकवि स्वयम्भू ने अपनी सुदुर्लभ रचना-शक्ति से काम लिया है। प्रीतिमयी प्रकृति के विभिन्न उपादानों से एक रतिमयी नारी के सज्जीकरण (एसेम्बुल) में महाकवि की सफलता सचमुच श्लाघनीय है।