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अपभ्रंश - भारती - 3-4
जा सकतीं। ''26 महापण्डित राहुल सांकृत्यायन का मानना है "सिद्धों की कविता ने केवल स्वच्छ साधनाजन्य हृदयानुभूति को प्रकाशित किया है, जिनमें सैकड़ों मनुष्य आनंद प्राप्त करते हैं, उसमें अपना निजी सौन्दर्य है तथा अद्भुत प्रभावोत्पादकता है। पाठक इन कविताओं को पढ़कर आत्मतृप्ति को अनुभव करने लगता है। अतः उनकी कविता को कविता मानना ही पड़ता है 7 वस्तुत: सिद्धों ने अपनी अटपटी वाणी द्वारा नए-नए उपमान तथा रूपकों द्वारा बुद्धिवाद को जन्म दिया है । अनेक नवीन शब्दों का प्रयोग किया जिनका प्रभाव हिन्दी के निर्गुण कवियों पर पड़ा। रीतिकाल की समस्त रचना का बीजरूप सिद्धों में प्राप्त होता है। इसप्रकार हिन्दी साहित्य की परवर्ती प्रवृत्तियों तथा परम्पराओं की गुत्थियों को सुलझाने के लिए इस साहित्य का अध्ययन परमावश्यक है।
1. भूमिका, साधनमाला, गा. ओ. सी. नं. 41, भाग 2, बड़ौदा 1928
2. प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य तथा उनका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव, रामसिंह तोमर, पृष्ठ 170
1711
3. हाजार वछरेर पुराण बाँगला भाषाय बौद्धगान ओ दोहा, बंगीय साहित्य परिषद् कलकत्ता से प्रकाशित सन् 1916 1
4. भूमिका, सनत्कुमारचरित, याकोबी, पृष्ठ 271
5. फ्रेंच भाषा में रचनाओं का अध्ययन प्रस्तुत किया। भूमिका, सनत्कुमारचरित, याकोबी, पृष्ठ 201 ढाका यूनिवर्सिटी स्टडीज, 1940 1
दोहाकोश, जर्नल्स अव द डिपार्टमेंट अव लैटर्स, भाग 28, कलकत्ता यूनिवर्सिटी,
1935 I
6. (37)
(ब)
(स)
7. (क)
(ख)
8. (क)
(ख)
मेटेरियल फार द क्रिटिकल एडीशन अव द चर्याज, भाग 30, 1939 । इंडियन लिंग्विस्टिक्स, भाग 10, 1948 ई. ।
चर्यागीति पदावली, वर्धमान, 1958 ई. ।
हिन्दी के प्राचीनतम कवि, पुरातत्त्वनिबंधावली, पृष्ठ 160-204
काव्यधारा, पृष्ठ 2-211
सरह का दोहाकोश, बिहार राष्ट्र भाषा परिषद् पटना, 1958 1
43
(ग)
9. नाथ सम्प्रदाय, हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृष्ठ 27-321
10. दोहाकोश की भूमिका, राहुल, पृष्ठ 77।
11. हिन्दी साहित्य का इतिहास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, पृष्ठ 8, पाद टिप्पणी ।
12. प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य, रामसिंह तोमर, पृष्ठ 173 174 1
13. दोहाकोश, राहुल, पृष्ठ 691
14. अपभ्रंश काव्य परम्परा और विद्यापति, अंबादत्त पंत, पृष्ठ 414-415।
15.
(क) उत्तरीभारत की संतपरम्परा, परशुराम चतुर्वेदी, पृष्ठ 32 तथा 45। (ख) सिद्ध साहित्य, डॉ. धर्मवीर भारती, पृष्ठ 113।