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________________ 26 अपभ्रंश-भारती-3-4 दिलाता है। मार्मिकता, संयम और सहृदयता भी इस रचना की शक्ति है। परंपरागत होते हुए भी उनके उपमान हृदयस्पर्शी हैं। और इन सबसे महत्वपूर्ण है रचनाकार की स्वाभाविकता जो प्रभाव साम्य उपमानों की खोज में सक्रिय है। अब्दुल रहमान अपनी कविता के लक्ष्य को पहले ही स्पष्ट कर देते हैं - विरहिणिमदूरद्धउ सुणहु विसुद्धडउ, रसियह रससंजीवयरों ॥22॥ अर्थात् संदेश रासक अनुरागियों का रतिगृह, कामियों का मन हरनेवाला, मदन के माहात्म्य को प्रकाशित करनेवाला, विरहिणियों के लिए मकरध्वज और रसिकों के लिए विशुद्ध रससंजीवक है। इसे सुनो - और संदेशरासक की रचनाप्रक्रिया स्पष्ट करते हुए कवि कहता है - अइणेहिण भासिउ रइमइवासिउ सवण कुलियह अभियसरो। ' लइ लिहइ वियक्खणु अत्थह लक्खणु सुरइसंगि जु विअड्ढ नरो॥23॥ अर्थात् संदेशरासक की रचना अति स्नेहपूर्वक की गयी है, यह प्रेम और शृंगार की भावनाओं से परिपूर्ण है कर्णपुटों में अमृत सरोवर या अमृतमय स्वर की भांति सुखद लगनेवाला है। इसके अर्थ और लक्षणों को वही विचक्षण अपने भाव में देख पाता है, हृदयंगम कर पाता है जो सूक्ष्म सुरति-संग में विदग्ध है। और यह वियोग, साधारण वियोग नहीं, इसका एक नया उपमान देखें - पाणी तणइ विओइ कादमि हि फाटइ हियउ॥10॥ (पानी से वियोग होने पर कीचड़ का हृदय फट जाता है) और तो और रचनाकार गाँव-गली की वीथियों में, सरोवर में खिले नलिनी के सौंदर्य के विपरीत बाड़ों में लगी हुई तूंबी या लौकी के फूलों में काव्य की खोज करता है - ता किं वाडि विलग्गा मा विअसउ तुंविणी कहवि॥ स्पष्टतः रचनाकार एक तरफ मनुष्य के उस भाव - श्रृंगार को अपनी रचना का आधार चुनता है जो मानवता के जीवन के अंत तक जीवित रहनेवाली है। दूसरी तरफ वह इस भाव को लोक-जीवन की सहज सामान्य भाव-लहरियों के थपेड़े में रखकर सजाता-संवारता है। उसके लिए वह सारे सरो-संजाम शब्द-चयन उपमान आदि-उसी भाव-भूमि से चुनता है और उन्हें स्वाभाविक कृत्य-चित्र से भर देता है। पथिक की तीव्र गति का एक सूक्ष्म चित्र देखें - इम मुद्धह विलंवतियह महि चलणेहि छिहंतु। ___ अद्धड्डीणउ तिणि पहिउ पहि जोयउ पवहंतु॥25॥ पथिक चल नहीं रहा, पृथ्वी छू रहा है और वह आधा उड़ता प्रतीत हो रहा है, वह हवा के समान स्वयं प्रवाहमान है, कोई भ्रम नहीं। यही नहीं पथिक की ऐसी स्थिति से प्रभावित नायिका उसे पकड़ने के लिए लपकती है और लगभग दौड़ पड़ती है। पर उसकी यह दौड़ कहीं नायिका की परिभाषा गड़बड़ा दे, इसलिए रचनाकार ने नायिका की स्वाभाविक चाल मंथरगति भी बता दी। परकाज प्रयोजन से उसकी मानसिक दशा को भी उसकी गति में हुए परिवर्तन द्वारा
SR No.521853
Book TitleApbhramsa Bharti 1993 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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