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________________ अपभ्रंश-भारती-3-4 15. परमात्मप्रकाश व योगसार चयनिका, डॉ. कमलचंद सोगाणी, छंद सं. 35, पृ. 15। 16. हिन्दी काव्यधारा, पं. राहुल सांकृत्यायन, पृ. 2421 17. वही; पृ. 2441 18. हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली - 7, पृ. 157। 19. हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली - 7, पृ. 158। 20. द्रष्टव्य, परमात्मप्रकाश व योगसार चयनिका, डॉ. कमलचंद सोगाणी, प्रस्तावना। 21. परमात्मप्रकाश 2, 701 22. परमात्मप्रकाश 1, 119। 23. परमात्मप्रकाश 2, 721 24. "शक्ति के विद्युत्कण, जो व्यस्त विकल बिखरे हैं, हो निरुपाय। समन्वय उसका करे समस्त विजयिनी मानवता हो जाय॥". - - कामायनी, जयशंकर प्रसाद', श्रद्धा सर्ग। 25. परमात्मप्रकाश 1, 123 (2)। 26. परमात्मप्रकाश 2, 159।। 27. हिन्दी काव्यधारा, पं. राहुल सांकृत्यायन, पृ. 248, छं. सं. 282, 283।। 28. लहर, जयशंकर 'प्रसाद'। 29. योगसार, हिन्दी काव्यधारा, पृ. 252, ई. सं. 105, 106। हिन्दी विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी
SR No.521853
Book TitleApbhramsa Bharti 1993 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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