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अपभ्रंश-भारती-2
कडवक 10 के अन्त में क्रम से लघु-गुरु व गुरु-लघु-गुरु प्रयुक्त हैं । सन्धि 4 में मात्र १ कडवक के प्रारम्भवाला दुवई छन्द का अन्त लघु-गुरु तथा इस सन्धि का शेष दुवई छन्द का अन्तिम चरण गुरु-लघु-गुरु से होता है । जैसे -
इय सो विसहरिंदमुहवियलिउ करिकरदीहदढभुओ । सत्यु सुणतु संतु सजायउ विउससिरोमणी सुओ ॥7 मंगलतूरभेरिणिग्घोसें बहिरिउ गयणमग्गउ । इपीईउ बे वि णं कुमरिउ मण सियकरे विलग्गउ ॥" चवइ धरित्तिणाहु का गुरु का लहुई भुअणसुन्दरी ।
भणु भणु वप्प देव कंदप्प मणोहरि कि व किण्णरी ॥१ 7. मदनावतार (मजुतिलका) इसके प्रत्येक चरण का अन्त लघु से होता है और प्रत्येक चरण में 20 मात्रा । जैसे
णवजलहोहिं व जललव मुअतेहिं, दढक ढिणपविवलयपरिबद्धदतेहिं । रणझणियमणि किकिणीसोहमाणेहि, अणवरयपरियलिय करडयलदाणेहिं । सोवण्णसाडीणिबधुद्धचिधेहि, करणासियागहियगयणाहगधेहिं । दतग्गणिब्भिण्णहरिणखरंगेहि, भूगोयरा खेयरा थिय मयगेहिं । भणिय कुमारेण कयतियसतोसेण, पाविट्ठ खदो सि एएण दोसेण ।
परधरणिपरतरुणि पर दविण कंखाएँ, मरिहीसी दुच्चार खलचोर सिक्खाएँ । • लविय सुकंठेण मा मरसु ओसरसु, णियजीविया काम कामिणिसुहं सरसु ॥ 8. चारुपद इसके प्रत्येक चरण में 10 मात्रा । प्रत्येक चरण का अन्त गुरु-लघु से होता है । जैसेखग्गेहि छिंदति
सिल्लेहि भिदति । बाणेहिँ विधति
फरएहिं रुधति । पासेहिँ वधति
दडेहि चूरंति । सूलेहिँ हूलति
दुरएहिँ पीलति । पाडति मोडति
लोट्टति घोटृति । रोसावउण्णाई
जुज्झति सेण्णाई। ता भासियं तस्स
वीरस्स वालस्स । केणावि पुरिसेण
कयसुयणहरिसेण । तरुणीणिमित्तेण
हणणिकचित्तेण । दुव्वयणणामेण
रामाहिरामेण रुद्धो तुहँ सामि
मायंगगय गामि । त सुणिवि विष्फुरिउ
रोसेण अइतुरिउ । णील इरिकरिचडिउ
अइऊण त्हो भिडिउ । पियवम्म उत्तस्स
रणभारजुत्तस्स 1