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________________ 82 अपभ्रंश - भारती-2 संपत्तउ वासारत्तु तांव तहिं दियह जति किर कइ वि जाव, संपत्तउ वासारतु तांव । घणगयवरि तडिकच्छंकियइ चडिउ धरेष्पिणु इंदधणु । वरिसंतु सरहिं पाउसणिवइ ण गिर्भे सहु करइ रणु । कायउलई तरुघरि सठियाई, हंसई सरमुयणुक्कंठियाई । सरवर संजाया तुच्छणलिण, दिसभाय वि णवकसणब्भमलिण । णच्चति मोर मज्जति कंक, पंथिय वहति मणि गमणसंक । चल चायय तहाहय लवंति, पउरंदरीउ जललउ पियति । प्रवसियपियाउ व्हसल्लियाउ, महमहियउ जाउ फुल्लियाउ । दिसपसरियकेयइकुसुमरेणु, चिक्खिल्ले तोसिय किडि करेणु । वरिसते देवें भरिउ देसु, जलु थलु सजायउ णिव्विसेसु । एक्कहिं मिलियाई दिसाणणाई, पप्फुल्लकयंबइ काणणाई । अवलोsवि रामु विसायगत्यु, थिउ णियकओलि संणिहियहत्थु । घणु गज्जउ विज्जु वि विप्फुरउ णाडउ सिहंडि वि मूढमइ । विणु सीयइ पावसु राहवहु भणु किं हियवइ करइ रई । महापुराण 75.11, 12 बिजलीरूपी रस्सी से अंकित मेघरूपी गज पर आरूढ़ इन्द्रधनुष लेकर पावसरूपी राजा मानो तीरों से बरसता हुआ ग्रीष्म के साथ युद्ध कर रहा हो । काककुल वृक्षरूपी घरों में बैठ गये । हंस सरोवरों को छोड़ने के लिए उत्सुक हो उठे । सरोवर कमलों से हीन हो गये । दिशाएं भी काले बादलों से मलिन हो गई । मयूर नाचते हैं, बगुले डुबकियां लगाते हैं । प्यास से व्याकुल चंचल चातक चिल्लाने लगे और मेघे का पानी पीने लगे । प्रोषितपतिकाएं दुःख से पीड़ित हो उठीं । जुही की लताएं महकने लगीं । केतकी - कुसुम-पराग दिशाओं में प्रसरित होने लगा । गज और सूअर कीचड़ से प्रसन्न ह उठे । मेघराज के बरसने पर देश (जल से ) भर गया । जल और स्थल निर्विशेष हो गये । दिशाओं के मुख एकाकार हो गये । काननों में कदम्ब के पुष्प खिल गये । विषादग्रस्त राम उसे देखकर अपने गाल पर हाथ रखकर बैठ गये । - मेघ गरजा, बिजली चमकी और मूढमति मोर नाच उठा । बताओ वह पावस राम ने हृदय में सीता के बिना कैसे प्रेम उत्पन्न कर सकता है । अनु. डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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