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अपभ्रंश-भारती-2
3. 'रत्तुप्पल-दल-लोयणेण' (रक्तकमल के समान लोचन) - रंगबोधपरक चाक्षुष बिम्ब (30,
7.9) । 4. 'धवलामल-कोमल-कमलु' (उज्ज्वल, निर्मल और कोमल कमल) - रंगबोधपरक चाक्षुष
बिम्ब और स्पर्श-बिम्ब (33, 11.2) । 5. 'चंदण-अगरु-गध-डिविडिक्किय' (चन्दन और अगरु-गन्ध से सुवासित)- घ्राणबिम्ब (34,
10.4) । 6. 'दिण्णई पुणु तिम्मणई मणि?ई । अहिणव-कइ-वयणा इव मिट्ठई ॥ (फिर मनपसन्द
कढ़ी दी गई, जो अभिनव कवि के वचनों के समान मीठी थी) - आस्वाद-बिम्ब (34, 13.5) ।
इस प्रकार, 'पउमचरिउ में पंचेन्द्रिय (रूप, रस, शब्द, स्पर्श और गन्ध) बिम्बों के एक-से-एक उत्तम निदर्शन भरे पड़े हैं, जिनका विवेचन स्वतन्त्र शोध का विषय है। कहना न होगा कि 'पउमचरिउ' में महाकवि स्वयम्भू द्वारा विनिवेशित सभी बिम्ब उनकी चित्तानुकूलता से आश्लिष्ट हैं, इसलिए चित्रात्मक होने के साथ ही अतिशय भव्य और रमणीय, अतएव रसनीय हैं ।