________________
अपभ्रंश-भारती-2
- मैली-कुचैली, कलहशील, भिखमंगी होकर दुःख सहती है । (4) इय चिरु अच्छहि, सोक्ख समिच्छहि । दइय? रूसहि, अप्पउ दूसहिँ ॥
- वही - इस अवस्था में चिरकाल तक रहती हैं । सुख की इच्छा करती हैं । देव पर रुष्ट
होती हैं और अपने को कोसती हैं । 15. मत्तमातंग
मात्रा - 16, गणयोजना - 6+4+4+2, तुकयोजना 1/2 । उदाहरण - (1) एम भणेवि वीर-चूडामणि । पउमप्पह-विमाणे थिउ पावणि ॥
तहिं अवलरें सुग्गीउ विरुज्झइ। भामण्डलु सरोसु सण्णज्झइ ॥ - पउमचरिउ 60.4 - वीरश्रेष्ठ हनुमान यह कहकर पद्मप्रभ विमान में जाकर बैठ गया । इस अवसर पर सुग्रीव
भी विरुद्ध हो उठा । रोष से भरकर भामण्डल भी तैयारी करने लगा । (2) सज्जियाई चउ हंस-विमाणई । जिणवर भवणहाँ अणुहरमाणई ॥ .. गय रयाइँ ण सिद्धहँ थाणई । भङ्ग-जणई णं कुसुमहाँ बाणई ॥ - वही
- चारों हंस-विमान सजा दिये गये, जो जिनवर भवनों के समान थे । वे विमान सिद्ध-स्थानों
की तरह गतरज (पाप और धूल से रहित) थे, कामदेव के बाणों की भौति भंगजन (मनुष्यों
को विचलित कर देनेवाले) थे । (3) मन्दर-सेल-सिहर-सच्छायइँ । किङ्किणी-घग्घर-घण्टा णायइँ ॥
अलि मुहलिय-मुत्ताहल-दामई । विज्जु-मेह-रवि-ससिपह णामइँ ॥ - वही उनके शिखर पहाड़ों की चोटियों के समान सुन्दर कातिमय थे । वे किंकिणी, घग्घर और घण्टों के स्वर से निनादित थे । उसमें जड़ित मुक्तामालाओं को भौरे चूम रहे थे।
उन विमानों के क्रमशः नाम थे - विद्युतप्रभ, मेघप्रभ, रविप्रभ और शशिप्रभ । (4) हरि-वलहद्दहुँ वे पट्टवियई । वे अप्पाणहाँ कारणे ठवियई ॥
जिणु जयकारेंवि वि चडिउ विहीसणु । जो भय-भीय-जीव मम्भीसणु ॥ - वही - पहले दो विभीषण ने राम और लक्ष्मण के लिए भेजे थे, और बाकी दो अपने लिए रख
छोड़े थे । जिन भगवान की जय बोलकर विभीषण विमान पर चढ़ गया, वह विभीषण
जो भयभीत लोगों को अभय प्रदान करनेवाला था । (5) का वि कन्त पिय णयण' अञ्जइ । का वि कन्त रण तिलउ पउञ्जइ ।
का वि कन्त सवियारउ जम्पइ । का वि कन्त तम्वोल, समप्पइ ॥- वही .. - कोई कान्ता अपने प्रिय के नेत्रों को औंज रही थी । कोई कान्ता अपने प्रिय के भाल
पर तिलक निकाल रही थी । कोई कान्ता विकारग्रस्त होकर कुछ कह रही थी । कोई कान्ता पान समर्पित कर रही थी ।