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________________ अपभ्रंश-भारती-2 - हे सुन्दर । इस जन्म में तुम अति पवित्र जिनधर्म में प्रयास करके स्वर्गवास ही तो पाओगे । (2) किं तेण सोक्खेण, ज होइ दुक्खेण । लइ ताम पच्चक्खु, तुहुँ मणि रइसुक्खु । - वही - किंतु उस सुख से क्या लाभ जो दुःखपूर्वक प्राप्त हो ? इसलिए लो तुम इस प्रत्यक्ष रतिसुख का आदर करो । (3) इयजाम वयपुण्ण, थिउ लेइ सुपइण्ण । पिच्छेवि सहसत्ति, चितेइ णिवपत्ति । __ - वही . - इस प्रकार, जब सुदर्शन व्रतपूर्ण सुप्रतिज्ञा ले रहा था, तभी राजपत्नी सहसा उसकी ओर देखकर सोचने लगी । (4) पच्चक्खु ऍहु मारु, परिचत्त सिगारु । जइ तणु पसाहेइ, तो जगु विमोहेइ । - वही यह श्रृंगारहीन होते हुए भी साक्षात् कामदेव है । यदि यह अपने शरीर को आभूषित कर ले तब तो समस्त जग को विमोहित कर लेगा । (5) विरहग्गि सतत्तु, केत्तडउ महु चित्तु । पुणु भणइ सच्छेहिँ, णिम्मीलिअच्छेहि । - वही - विरहाग्नि से संतप्त मेरा चित्त तो है ही कितना ? फिर वह अपनी स्वच्छ निमीलित आँखों सहित बोली । (6) झाएहि कि णाह, उतत्त कणयाह । मुहजित्त मयवाह, तियचित्त मयवाह । - वही तपाये हुए सुवर्ण के सदृश अपने मुख से चन्द्र को जीतनेवाले तथा स्त्रियों के चित्त में मद उत्पन्न करनेवाले, हे नाथ ! आप क्या सोच रहे हैं ? 15. मधुभार आठ मात्रिक छंद है । उदाहरण - (1) तिहुवणरम्महुँ, तो वि ण धम्महुँ । लग्गहिं मूढिउ, पाव परूढिउ ॥ - सुदसणचरिउ, 6.15 - इतने पर भी वे मूढ़ पाप में फंसी हुई त्रिभुवनरम्य धर्म में मन नहीं लगाती । (2) कुंटिउ मंटिउ, मोट्टिउ छोट्टिउ । बहिरिउ अधिउ, अइदुग्गधिउ ॥ - वही - वे ठूठी, लंगड़ी, मोटी, छोटी, बहरी, अंधी, अतिदुर्गन्धी (होती है)। (3) मइल कुचेलिउ, कलहण सीलिउ । भिक्ख भमतिउ, दुक्ख सहतिउ ॥ - वही
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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