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प्रकाशकीय
अपभ्रंश भारती का द्वितीय अंक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है । यह निर्विवाद है कि अपभ्रंश भारत की सशक्त भाषा रही है । विभिन्न कवियों ने जनता में लौकिक एवं पारलौकिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए अनेक / भाँति-भाँति की विधाओं में काव्यों की रचना की है । करीब 1000 वर्ष तक अपभ्रंश साहित्य ने भारतीय समाज का
मार्गदर्शन किया है ।
आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्य भारतीय समाज के आधार रहे हैं । जब तक समाज में मूल्यों की चेतना सघन रहती है तब तक समाज विकास की ओर अग्रसर होता रहता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मूल्यों को प्राणवन्त बनाए रखने में अपभ्रंश साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है । इस साहित्य ने मानव समाज में नैतिकता - मानवता - करुणा, अहिंसा - अपरिग्रह आदि के मूल्यों को स्थापित करने में सजगता प्रदर्शित की है ।
यह कहना युक्तियुक्त है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास की आदिकालीन मध्ययुगीन प्रवृत्तियों का प्रधान प्रेरणा-स्रोत अपभ्रंश साहित्य रहा है । अपभ्रंश की अधिकांश रचनाएँ साहित्यिक सरसता से भरपूर हैं । काव्यरूपों और _haraषयों के अध्ययन के लिए राष्ट्रभाषा हिन्दी व आर्यभाषाओं के विकास क्रम के ज्ञान के लिए अपभ्रंश साहित्य की उपयोगिता असंदिग्ध है ।
'अपभ्रंश भारती' पत्रिका का प्रकाशन अपभ्रंश भाषा और साहित्य के पुनरुत्थान के लिए उठाया गया एक कदम है । इस अंक में अपभ्रंश साहित्य के विविध पक्षों पर विद्वान लेखकों ने अपने विचार प्रस्तुत किए हैं । उन सभी लेखकों के प्रति हम आभारी हैं ।
इस अंक के प्रकाशन एवं मुद्रण में सहयोगी अकादमी के कार्यकर्ता, सम्पादकगण व जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि. धन्यवादार्ह हैं ।
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कपूरचन्द पाटनी
मंत्री
प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी