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________________ अध्यक्षीय अपभ्रंश साहित्य और भाषा के अध्येताओं के समक्ष अपभ्रंश - भारती का द्वितीय अंक सहर्ष प्रस्तुत है । राष्ट्रभाषा हिन्दी व प्रान्तीय भाषाओं के लिए आवश्यक है उनकी 'मूल प्रकृति को जानना । हिन्दी में अपभ्रंश की प्राणधारा अविच्छिन्न रूप में प्रवाहित है । हिन्दी मुख्यतः अपभ्रंश की जीवन्त परम्परा को लेकर आगे बढ़ी है। यथार्थतः अपभ्रंश लगभग सभी आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की जननी है । लोकजीवन की ऐसी कोई विधा नहीं जिस पर अपभ्रंश भाषा में न लिखा गया हो । अपभ्रंश साहित्य के सांस्कृतिक महत्व को समझते हुए ही दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा अपभ्रंश साहित्य अकादमी की स्थापना की गई । भाषा के अध्ययन-अध्यापन को दिशा प्रदान करने के लिए अपभ्रंश रचना सौरभ, अपभ्रंश काव्य सौरभ, पाहुड दोहा चयनिका आदि पुस्तकें प्रकाशित की गई । अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम व अपभ्रंश डिप्लोमा पाठ्यक्रम विधिवत निःशुल्क चलाये जा रहे हैं । पत्राचार अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम अखिल भारतीय स्तर पर प्रारंभ कर दिया गया है । विद्वानों द्वारा किये जा रहे अपभ्रंश साहित्य के मंथन को 'अपभ्रंश भारती' में प्रकाशन की व्यवस्था करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं । प्रस्तुत अंक में विद्वानों द्वारा साहित्यिक एवं सैद्धान्तिक दृष्टियों से विचार प्रस्तुत किये गये हैं । जिन विद्वानों ने अपनी रचनायें भेजकर इस अंक के प्रकाशन में योगदान दिया हम उनके आभारी हैं । पत्रिका के सम्पादक, सहयोगी सम्पादक एवं सम्पादक मण्डल धन्यवादार्ह हैं । (i) नरेशकुमार सेठी अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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