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________________ भ्रंश-भारती-2 शालभंजिका यह 24 मात्रावाला समद्विपदी है । यति 12 पर । उदाहरण (1) ताव तेत्यु णिज्झाइय वावि असोय- मालिणी । हेमवण्ण सपओहर मणहर णाईं कामिणी ॥ प. च. 42.10 तब उसने अशोक-मालिनी नाम की बावडी देखी, सुनहले वर्ण की वह जैसे सपयोधर (जल, स्तन धारण करनेवाली) सुन्दर कामिनी हो । - (2) चउ दुवार - चउ - गोउर - चउतोरण - रखण्णिया - — (3) तर्हि पएसें वइदेहि ठवेप्पिणु गउ दसाणणो । झिज्जमाणु विरहेण विसंथलु विमणु दुम्मणो ॥ वही उस प्रदेश में सीतादेवी को प्रतिष्ठित कर दशानन चला गया, विरह से क्षीण विसंस्थल विमन और अत्यन्त दुर्मन । - (4) मयण - वाण - जज्जरियउ जरिउ आवन्ति जन्ति दूइआउ कामदेव के बाणों से जर्जर और ज्वरयुक्त जिसे निवारण करना कठिन है । सैकड़ों बार दूतियाँ आती हैं और जाती हैं । । चम्पय-तिलय - बउल-णारङ्ग- लक्ङ्ग - छण्णिया ॥ वह चार द्वारों और गोपुरों से सुन्दर थी, चम्पक, तिलक, बकुल, नारंग और लवंग वृक्षों से आच्छादित थी । (5) वयणएहिं खर- महुरेहिं मुहु सूसइ विसूरए । छोहें छोड़ें णिवडन्तऍ जूआरो व्व जूरए ॥ - दुवार - वारओ । सयवार- वारओ ॥ - - 55 (6) सिरु धुणेइ कर मोडइ अङ्गु क्लेइ कम्पए । अहरू लेवि णिज्झायइ कामसरेण जम्पए ॥ वही वह सिर धुनता है, हाथ मोड़ता है, शरीर मोड़ता है, काँपता है । अधर पकड़कर ध्यानमग्न हो जाता है । काम के स्वर में बोलता है । विलासिनी वही कठोर और मधुर शब्दों से उसका मुख सूखता है, वह खिन्न होता है, क्षोभ क्षोभ में वह गिरता है, जुआरी की तरह पीड़ित होता है । सोलह मात्रिक समद्विपदी, अन्त रगण । उदाहरण (1) ताव तेत्यु भीसावणे वणे । एकमेक्क-हक्कारणे रणे ॥ तब इस भयंकर वन में, जिसमें एक-दूसरे को हंकारा जा रहा है । (2) छत्त - दण्ड सय-खण्ड - खण्डिए । हड्ड-रुण्ड - विच्छड्डु - मण्डिए ॥ वही छत्रों और दण्डों के सौ-सौ टुकड़े हो चुके हैं, जो हड्डियों और धड़ों के समूह से आच्छादित हैं । - - पउमचरिउ, 40.2
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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