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________________ 56 अपभ्रंश-भारती-2 (3) तर्हि महाहवे घोर-दारुणे । छि वीर पहरन्तु साहणे ॥ - वही - ऐसे उस घोर महायुद्ध में सेना के भीतर वह वीर प्रहार करता हुआ दिखायी दिया । (4) कि मएण दूसणेण सम्वुणा । सायरो किमोह विन्दुणा ॥ - दूषण या शम्बू के मर जाने से क्या ? बूंद से समुद्र का क्या होता है । (5) इन्दणील-वेरुलिय-णिम्मल । पोमराय-मरगय-समुज्जल ॥ - प. च. 55.5 - इन्द्रनील और वैदूर्य से निर्मल पद्मराग और मरकत मणियों से । (6) वर-पवाल-माला-पलम्विर । मोत्तिएक-झुम्बुक-झुम्विर ॥ - वही - उत्तम मूंगों की माला से लम्बमान और झूमरों से झुम्बिर था वह भवन । 8. चप्पड़ मात्रा - 20, अन्त ल ल । उदाहरण - (1) सूरुग्गमणहाँ लग्गिवि तेरह घडिय', अवरु वि पंचासहिं तो फ्लहहिं चडियई । होसइ मिहणलग्गु वहुवरमणदिहियरु, त णिसुणेवि वयणु गउ णियघरै वणिवरु । - स. चरिउ, 5.4 - सूर्य के उदय होने से तेरह घड़ी और पचास पल चढ जाने पर मिथुन लग्न होगा, जो वर-वधु के मनों को सुख उपजानेवाला है । ज्योतिषी की यह बात सुनकर सेठ अपने घर चला गया । लहु विवाहसामग्गि असेस पउजिय, बधव सयण इट्ट के के णउ रंजिय । दोहिं वि घरहिं चारु मंडउ विरइज्जइ, दोहि वि घरई असमु तोरणु उब्भिज्जइ । - वही - उसने शीघ्र ही विवाह की समग्र सामग्री एकत्रित की । बांधव, स्वजन व इष्टमित्र कौन ऐसे ये जो प्रसन्न नहीं हुए । दोनों घरों में सुन्दर मण्डप रचे गये । दोनों घरों में अनुपम तोरण लगाए गए । (3) दोहिं वि घरहिं घुसिणच्छडउल्लउ दिज्जइ, दोहि वि घरहिं रयणरंगावलि किज्जइ । दोहि वि घरहिँ धवलु मंगलु गाइज्जइ, दोहि वि घरहिं गहिरु तूरउ वाइज्जइ । - वही
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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