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________________ अपभ्रंश-भारती-2 45 अपभ्रंश का कवि था । उसका सन्देश-रासक परवर्ती अपभ्रंश का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है और • उसकी काव्य-सुषमा पर रीझ कर मुनि जिनविजय, हरिवल्लभ भायाणी और डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वानों ने उसे हिन्दी काव्य-परम्परा का महत्तम प्रारम्भिक काव्य घोषित किया है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इतिहास में न तो अब्दुलरहमान का उल्लेख है और न ही उसके सन्देश-रासक का । सन्देश-रासक को प्रकाश में लाने का श्रेय दुर्लभ और प्राचीन ग्रन्थों के उद्धारक अपभ्रंश-शास्त्री पं. श्री मुनि जिनविजयजी को है । वैसे तो उन्हें सन् 1912 ई. में ही सन्देश-रासक की एक प्रति प्राप्त हो चुकी थी किन्तु उसका सम्पादन और प्रकाशन सन् 1945 में ही सम्भव हुआ । विगत वर्षों में सन्देश-रासक पर विद्वान इस प्रकार रीझ उठे कि उसका कवि और काव्य दोनों हिन्दी की परम उज्ज्वल और मूल्यवान मणि के रूप में स्वीकृत किये गये हैं । सन्देश-रासक के रचियता अददहमाण या अब्दुलरहमान के विषय में अधिक जानकारी नहीं मिलती । स्वयं कवि ने अपने काव्य के प्रथम प्रक्रम में अपना परिचय दिया है और स्वयं के लिए अद्दहमाण अभिधा का प्रयोग किया है - तह तणओ कुलकमलो पाइय कव्वेसु गीय विसयेसु । अद्दहमाण सनेहरासय रइयं ॥ अद्दहमाण का अर्थ अब्दुलरहमान किया गया है । पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी अद्दहमाण का अर्थ 'आहित यश' करने के पक्ष में हैं । उन्होंने अद्दहमाण का सम्बन्ध ज्वलन्त यश से भी जोड़ा है क्योंकि अद्दह का एक अर्थ अदहन (उबलता, धधकता या जलता हुआ) भी होता है । कवि की श्लेषमूलक शब्दों के प्रयोग में गहरी दिलचस्पी थी और यह उसकी स्वाभाविक शैली का एक उदाहरण है कि वह उद्धृत पक्तियों में अपने नाम का उल्लेख करते हुए अपने काव्य-यश के संबंध में दोक्ति भी करता है । अद्दहमाण के पिता का नाम मीरसेन था । वे तन्तुवाय (जुलाहे) थे और हिन्दू धर्म-परिवर्तन लमान हो गये थे । वे मलतः पश्चिमी भारत के निवासी थे और जीविका के लिए पूर्व की ओर आ गये थे । इस पश्चिम और पूर्व देश का ठीक-ठीक सन्धान नहीं किया जा सका है, किन्तु पश्चिम देश से कवि का आशय उस क्षेत्र से जान पड़ता है जो आजकल पश्चिमी पाकिस्तान में है । अब्दुलरहमान का जन्म पूर्व में हुआ था । उनका जन्म कब हुआ था, यह कहना सम्भव नहीं है किन्तु ऐसा अनुमान किया जाता है कि वे 12वीं शताब्दी में उत्पन्न हुए होंगे । महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने अब्दुलरहमान को 11वीं शताब्दी का कवि माना है और उसके सन्देश-रासक की रचना का काल 12वीं-13वीं शताब्दी निश्चित किया है । मुनि जिनविजयजी ने अन्तःसाक्ष्य के आधार पर यह अनुमान लगाया है कि अब्दुलरहमान का जन्म और उसके काव्य की रचना मुहम्मद गोरी के आक्रमण के पूर्व हो चुकी होगी । सन्देश-रासक में विजयनगर, विक्रमपुर, स्तम्भ-तीर्थ आदि नगरों के जिस ऐश्वर्य का उल्लेख हुआ है, वह मुहम्मद गोरी के आक्रमण (1192 ई.) के बाद सम्भव नहीं है । सन्देश-रासक एक रासक काव्य है और इसका निर्माण लोक-प्रचलित प्रेमकथा के आधार पर हुआ है । इस प्रकार के लोकाख्यानमूलक काव्य प्रायः कल्पनाबहुल हुआ करते थे और कवि अवसर निकालकर उनमें प्रेम, विरह, षड्ऋतु आदि का विस्तृत चित्रण करता था । सन्देश-रासक 223 छन्दों का एक लघु काव्य है, जो अपनी सम्पूर्णता में तो खण्ड-काव्य कहा जा सकता है, किन्तु जिसका प्रत्येक छन्द स्वतंत्र महत्त्व और सौन्दर्य रखता है । 'उद्धवशतक' या 'आँसू के वस्तु-संगठन
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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