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अपभ्रंश भारती-2
में जो बिखरा - बिखरा-सा कसाव है या कसा कसा-सा बिखराव है, ठीक वैसा ही सन्देश - रासक में देखने को मिलता है । सन्देश रासक की सम्पूर्ण कथा तीन प्रक्रमों में विभाजित है
(1) प्रस्तावना
(2) विरहिणी नायिका का वर्णन और पथिक को सन्देश
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(3) षड्ऋतु वर्णन
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प्रथम प्रक्रम में ईश्वर वन्दना, कवि परिचय, ग्रंथ परिचय श्रोताओं से निवेदन आदि सम्मिलित हैं । दूसरे प्रक्रम में विरहिणी नायिका का चित्रण है, जो अपने प्रियतम तक अपने विरह की व्याकुलता का समाचार प्रेषित करना चाहती है । मेघदूत में तो कालिदास ने मेघ को सन्देश वाहक बनाया है, किन्तु सन्देश - रासक की नायिका पथिक को अपना दूत बनाकर भेजती है । संयोग से पथिक वहीं जा रहा है, जहां विरहिणी का प्रियतम है । वह विस्तार से अपने विरह की व्यथा-कथा कहती है और ऊबकर जब पथिक चलने को होता है तो एक छन्द और सुनने का अनुरोध कर उसे व्यथा-कथा का सम्पूर्ण विवरण जानने को उत्कण्ठित करती है । दूसरा प्रक्रम यहाँ समाप्त होता है । तीसरे प्रक्रम में अपनी विरह व्यथा के बहाने नायिका षड्ऋतु वर्णन करने लगती है। सम्पूर्ण ऋतु वर्णन सुनकर पथिक प्रस्थान करने को उद्यत होता ही है कि सहसा मोड़ पर विरहिणी को अपना पति दिखायी पड़ता है । श्रोताओं और पाठकों के प्रति शुभाशंसा के साथ काव्य की समाप्ति होती है ।
सन्देश रासक एक मधुर काव्य है । इसमें सब मिलाकर 22 प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है जिनमें सर्वाधिक संख्या रास-छन्दों की है। सन्देश रासक की भाषा, जैसा कहा जा चुका है. परवर्ती अपभ्रंश है । यह परवर्ती अपभ्रंश, ग्राम्य- अपभ्रंश के निकट थी और हिन्दी की बोलियों का आभास देने लगी थी । अतः यह स्वाभाविक है कि सन्देशरासक पर जितना अधिकार अपभ्रंश का हो, उतना ही हिन्दी का भी ।
नरपति नाल्ह
नरपति नाल्ह आदिकालीन काव्य का एक कृती कवि है और उसका 'बीसलदेव रासो हिन्दी की मुक्तक काव्य परम्परा का प्रतिनिधि काव्य । आदिकाल के गेय काव्य साहित्य में बीसलदेव रासो की चर्चा अत्यन्त सम्मानपूर्वक की जाती है। बीसलदेव रासो प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा की कोटि में परिगणित किया जाता है । कवि ने बीसलदेव रासो में जिस प्रोषितपतिका का वर्णन किया है, वह सन्देश - रासक और ढोला-मारू - रा- दोहा की प्रोषितपतिका की प्रतिवेशिनी जान पड़ती है । यह श्रृंगार रस का मनोरम काव्य है ।
नरपति नाल्ह कौन था ? इस संबंध में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता । उसने अपने रासो में बारम्बार स्वयं को व्यास कहा है। अनुमान किया गया है कि नरपति भाट था। नरपति उसका नाम था और नाल्ह उसका अल्ल । अधुनातन खोजों से यह पता चला है कि नरपति नाल्ह, बीसलदेव रासो के नायक बीसलदेव (विग्रहराज चतुर्थ) का समकालीन था । नरपति बहुत पढ़ा-लिखा तो नहीं था, किन्तु वह बड़ा सवेदनशील और सूझबूझवाला कवि था । लगता है, उसने अपने रासो की सारी कथा गा-गाकर सुनायी थी, जो अपने माधुर्य के कारण जनता का कण्ठहार बन गयी । बीसलदेव रासो की सारी कथा चार खण्डों में विभाजित है । प्रथम