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________________ 42 अपभ्रंश-भारती-2 मोक्ख (पउमचरिउ 22.2) - मोक्ष । सकल कर्मों का नाश हो जाने पर जीव का केवल ज्ञानानन्दमय स्वरूप को प्राप्त होकर, देह के छूट जाने पर ऊर्ध्वगमन स्वभाव के द्वारा ऊपर लोक के अग्रभाग में सदा के लिए स्थित हो जाना मोक्ष, मुक्ति अथवा निर्वाण कहलाता है । रुद्दट्ट (मयणपराजयचरिउ 16) - रौद्रात । हिंसा, झूठ, चोरी और विषय संरक्षण के समय से युक्त जो ध्यान होता है वह संक्षेप से रौद्रध्यान कहा गया है तथा इष्ट का वियोग, अनिष्ट का संयोग, निदान और वेदना का उदय होने पर जो कषाय से युक्त ध्यान होता है वह संक्षेप से आर्तध्यान कहा गया है। सल्लेहण (पउमचरिउ 22-11) - सल्लेखन । सत् अर्थात् भलीप्रकार और लेखना का अर्थ है कषाय तथा शरीर का कृश करना । इसप्रकार कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ) तथा शरीर को भलीप्रकार कृश करना सल्लेखना कहलाती है । सल्लेखना दो प्रकार की होती है, यथा(1) आभ्यन्तर सल्लेखना - कषायों को कृश करना आभ्यन्तर सल्लेखना कहलाती है, (2) बाह्य सल्लेखना - शरीर को कृश करना बाह्य सल्लेखना कहलाती है । सल्लेखना योगीगत है जबकि आत्महत्या भोगीगत । योगी तो अपने प्रत्येक जीवन में शरीर को सेवक बनाकर अन्त समय में सल्लेखना द्वारा उसका त्याग करता हुआ प्रकाश की ओर चला जाता है और भोगी अर्थात् आत्महत्यारा अपने प्रत्येक जीवन में उसका दास बनकर अन्धकार की ओर चला जाता है । 1. अपभ्रंश वाङ्मय में व्यवहृत पारिभाषिक शब्दावलि, आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', महावीर प्रकाशन, अलीगंज, एटा (उ.प्र.), सन् 1977 । 2. बृहत् हिन्दी शब्द-कोश, सम्पा. कालिकाप्रसाद आदि, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी । 3. पारिभाषिक शब्दावलि कुछ समस्याएँ, सम्पा. डॉ. भोलानाथ तिवारी । 4. Story of Language. 5. हिन्दी शब्द रचना, माईदयाल जैन । 6. संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ । 7. बृहद जैन शब्दार्णव, भाग-2, मास्टर बिहारीलाल । 8. जैन हिन्दी पूजाकाव्य परम्परा और आलोचना, डॉ. आदित्य प्रचण्डिया 'दीति' । 9. बृहद् द्रव्य संग्रह, नेमिचन्द्राचार्य । 10. जैन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन, डॉ. महेन्द्रसागर प्रचण्डिया । 11. आर्ष ग्रन्थों में व्यवहृत पारिभाषिक शब्दावलि और उसका अर्थ-अभिप्राय, डॉ. आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनंदन ग्रंथ । 12. अपभ्रंश वाङ्मय में व्यवहत पारिभाषिक शब्दावलि. आदित्य प्रचण्डिया 'दीति'. परामर्श (हिन्दी). सितम्बर 1984, पुणे विश्वविद्यालय प्रकाशन । 13. अपभ्रंश भाषा का पारिभाषिक कोश, डॉ. आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', डी. लिट. का शोध प्रबन्ध, 1988, आगरा विश्वविद्यालय । 14. अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, वीरेन्द्र श्रीवास्तव ।
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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