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अपभ्रंश-भारती-2
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जं पाउस-णरिन्दु गलगज्जिउ
ज पाउस-णरिन्दु गलगज्जिउ, धूलि-रउ गिम्भेण विसज्जिउ । । गम्पिणु मेह-विन्दै आलग्गउ, तडि-करवाल-पहारेहिं भग्गउ । ज विवरम्मुहु चलिउ विसालउ, उठ्ठिउ, 'हणु भणन्तु उण्हालउ । धगधगधगधगन्तु उद्धाइउ, हसहसहसहसन्तु संपाइउ । जलजलजलजलजल पचलन्तउ, जालावलि-फुलिङ्ग मेल्लन्तउ । धूमावलि-धयदण्डुब्भेप्पिणु, वर-वाउल्लि-खग्गु कड्ढेप्पिणु । अडझडझडझडन्तु पहरन्तउ, तरुवर-रिउ-भड-थड भज्जन्तउ । मेह-महागय-घड विहडन्तउ, ज उण्हालउ दिठ्ठ भिडन्तउ ।
पउमचरिउ, 28.2
जब पावस (वर्षाऋतु का) राजा गरजा (तो) ग्रीष्म द्वारा धूल-वेग (आधी) भेजा गया। (वह धूल) मेघ-समूह से जाकर चिपक गई, (फिर) बिजलीरूपी तलवार के प्रहारों से (वह धूल) छिन्न-भिन्न कर दी गई । (इसके परिणामस्वरूप) जब (धूल) विमुख चली (तो) भयंकर ग्रीष्मऋतु (पावस राजा को) 'मारो कहती हुई उठी (और) खूब जलती हुई ऊँची दौड़ी (तथा) उत्तेजित होती हुई तेजी से जली, तब (गी) लपट की श्रृंखला से चिनगारियों को छोड़ते हुए (आगे चली) । (और) जब ग्रीष्म ऋतु धुआं की श्रृंखला के ध्वजदण्डों को ऊँचा करके, तूफानरूपी श्रेष्ठ तलवार को खींचकर झपट मारते हुए (और) प्रहार करते हुए, शत्रु के वृक्षोंरूपी श्रेष्ठ योद्धा-समूह को नष्ट करते हुए, मेघरूपी महा-हाथियों की टोली को खण्डित करते हुए (पावस राजा) से भिड़ती हुई दिखाई दी।
अनु. डॉ. कमलचन्द सोगानी