SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश-भारती-2 जुलाई, 1992 अपभ्रंश के कुछ प्राङ्मध्यकालीन खण्डकाव्य • डॉ. सियाराम तिवारी सामान्यतः 1400 ई. से 1850 ई. तक का काल हिन्दी-साहित्य के इतिहास में मध्यकाल माना जाता है । इस युग में प्रचुर खण्डकाव्यों की रचना हुई । किन्तु इसके पहले भी कुछ अच्छे खण्डकाव्य लिखे गये हैं जिनका विवेचन इस लेख का उद्देश्य है । सन्देश रासक - इस युग का पहला खण्डकाव्य अब्दुलरहमान का 'सन्देश रासक उल्लेखनीय है । यह परवर्ती अपभ्रंश में लिखा गया है । इसका रचना-काल बारहवीं शती ईस्वी के आसपास माना जाता है। यह बिल्कुल संस्कृत दूतकाव्यों की परम्परा में है । यह तीन प्रक्रमों में विभाजित दो सौ तेईस छंदों का एक सुन्दर खण्डकाव्य है । इसमें कुल बाईस प्रकार के छंद व्यवहृत हुए हैं - रासा, चउपइय, लंकोडय, अडिल्ला, मडिल्ला, पद्धडिया, कव्व अथवा वत्यु, कामिणीमोहण, दुबई, खणिज्ज, गाहा, दोहा, चूडिल्लय, फुल्लय, डोमिलय, खरड्डा, छप्पय, खडहड़य, खंधय, मालिनी, नदिणी और भमरावली । इसके आदि और अंत में आशीष है । इस काव्य की विशेषता यह है कि इसके छंद एक ओर तो मुक्तक के गुणों से युक्त हैं और दूसरी ओर वे कथा-सूत्र में भी ग्रथित हैं। इस तरह वामन ने जो यह कहा है कि पहले मुक्तक की सिद्धि हो लेती है, उसके बाद प्रबंध की सिद्धि होती है, वह 'सन्देश रासक' के लिए पूर्णतः लागू है । अत गीतात्मक कलेवर में यह एक सुन्दर खण्डकाव्य है । इसमें एक प्रोषितपतिका का विरह-निवेदन और अंत में उसका संयोग वर्णित है । इस तरह इसे संयोगांत विरह-काव्य कहा जा सकता है । यह नायिका-प्रधान रचना है, क्योंकि इसमें उसीके
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy