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________________ अपभ्रंश-भारती-2 143 30. दिवे-दिवे छिन्देवउ आउ-तरु । (प. च. 50.6) - आयुरूपी वृक्ष प्रतिदिन छेदा जायगा । 31. रत्तिन्दिउ लङ्काउरि-पएसु । जगडउ वइसवणहो तणउ देसु । (प. च. 10.7) - रात-दिन लंकापुरी-देश और, वैश्रवण का देश झगड़ता है । 32. चिन्तेव्वउ जीवें रत्ति-दिणु, भवे-भवे महु सामिउ परम जिणु । (प. च. 54.16) - जीव द्वारा रात-दिन यह विचारा जाना चाहिये कि भव-भव में परमजिन मेरे स्वामी हों । 33. महु पुणु चङ्गउ अवसरु वट्टइ, जो किर अज्जु-कल्ले अन्भिट्टइ । (प. च. 53.2) - फिर मेरे लिए अच्छा अवसर है, जो निश्चय ही आज-कल में युद्ध करूंगा । 4.34. झत्ति पलित्तउ अणुहरमाणु हुआसहो । (प. च. 60.1) - आग के समान, (वही लक्ष्मण) शीघ्र भड़क उठा । 35. सीयए वुत्तु 'पुत्तु महु एवहिं । छुडु वद्धउ छुडु धरउ सुखेवेहिं । (प. च. 35.2) - सीता के द्वारा कहा गया 'इस समय (तुम) मेरे पुत्र (हो) । तुम शीघ्र बढ़ो, शीघ्र इस समय सुख धारण करो । 36. सो अइरेण विणासइ । । (प. च. 71.12) - वह शीघ्र नष्ट हो जाता है । 37. लहु सण्णाह-भेरि अप्फालिय । (प. च. 40.14) - शीघ्र ही संग्राम-भेरी बजवा दी गई । .38. अत्थाण-खोह णिविसेण जाउ । (प. च. 37.8) - पल भर में सभा में क्षोभ उत्पन्न हुआ । 39. तो एम पसंसेवि तक्खणेण, "हिय-जाणइ' अक्खिउ लक्खणेण । (प. च. 40.13) - तब इस प्रकार प्रशंसा करके, लक्ष्मण द्वारा तत्काल (उसी समय) कहा गया (कि) जानकी हरण करली गई है । 40. तक्खणे ज्जे पण्णत्ति-वलेण विणिम्मियं वलं । (प. च. 46.3) - (उन्होंने) विद्या के बल से तत्काल (उसी समय) सेना बनाली । 41. णिविसे तं जम-णयरु पराइउ । (प. च. 11.9) - पल भर में वह यम के नगर पहुँच गया ।
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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