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42. खणे खणे वोल्लहि णाई अयाणउ । (तुम) हर क्षण अज्ञानी की तरह बोलते हो ।
43. पट्ठविय विसल्ल खणन्तरेण ।
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44. जे मुआ वि जीवन्ति खणखणे,
दुज्जय हरि - वल होन्ति रणङ्गणे ।
( प. च. 70.1)
मरे हुए भी जो क्षण-क्षण में जीते हैं (तो) युद्ध में लक्ष्मण की सेना दुर्जय होगी।
46. पुणु णरवइ मंदिरे गय तुरन्त । फिर राजा तुरन्त मन्दिर गया ।
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45. जो णरवर - लक्खेहि पणविज्जइ ।
सो पहु मुअउ अवारें णिज्जइ ।
(प.च. 5.2)
जो श्रेष्ठ नर लाखों द्वारा प्रणाम किया जाता है, वह प्रभु मरा हुआ तुरन्त ले जाया जाता है ।
( प. च. 69.8)
47. णिउ रामहो पासु तुरन्तएण ।
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विशल्या कुछ देर बाद भेज दी गई ।
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48. सो रिसि सङ्ग तुरन्ते वन्दिउ ।
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( वह उसे) जल्दी से राम के पास ले गया ।
49. जं जाणहि तं करहि तुरन्तउ । जो समझते हो वह तुरन्त करलो ।
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अपभ्रंश - भारती-2
वह मुनिसंघ जल्दी से वन्दना किया गया ।
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( प. च. 44.12)
(प.च. 69.15)
( प. च. 68.1)
( प. च. 57.5)
5.50 तं विहिसणा परं पजम्पियं, दहमुहस्स ण कयाइ जं पिय । हे विभीषण ! तुम्हारे द्वारा यह कहा गया है जो रावण के लिए कभी प्रिय नहीं है। 51. चिरु जेण ण इच्छिउ दप्पणउ,
रहे तेण णिहालिउ अप्पणउ ।
(प.च. 61.3)
जिसके द्वारा दीर्घकाल तक ( बहुत समय तक) दर्पण नहीं चाहा गया, उसके द्वारा रथ में स्वयं देख लिया गया ।
( प. च. 6.16 )
( प. च. 6.16)
52. पढमु सरीरु ताहे रोमञ्चिउ । पच्छए णवर विसाए स्खञ्चिउ । ( प. च. 50.3)
पहले उसका शरीर पुलकित हुआ किन्तु बाद में (वह) विषाद के द्वारा भरी गई । 53. पहिलउ जुज्झेवउ दिट्टि - जुज्झु ।
जल - जुज्झु पडीवउ मल्ल - जुज्झु ।
( प. च. 4.9)
पहले दृष्टि-युद्ध लड़ा जाना चाहिये, फिर जल युद्ध और मल्ल - युद्ध 54. जं जिणेवि ण सक्किउ सलिल जुज्झ पारद्ध पडीवउ मल्ल - जुज्झु । (प.च. 4.11)
जब जल-युद्ध जीतने के लिए समर्थ नहीं हुआ (तो) फिर मल्ल-युद्ध प्रारम्भ किया गया।