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________________ 144 42. खणे खणे वोल्लहि णाई अयाणउ । (तुम) हर क्षण अज्ञानी की तरह बोलते हो । 43. पट्ठविय विसल्ल खणन्तरेण । - - - 44. जे मुआ वि जीवन्ति खणखणे, दुज्जय हरि - वल होन्ति रणङ्गणे । ( प. च. 70.1) मरे हुए भी जो क्षण-क्षण में जीते हैं (तो) युद्ध में लक्ष्मण की सेना दुर्जय होगी। 46. पुणु णरवइ मंदिरे गय तुरन्त । फिर राजा तुरन्त मन्दिर गया । - 45. जो णरवर - लक्खेहि पणविज्जइ । सो पहु मुअउ अवारें णिज्जइ । (प.च. 5.2) जो श्रेष्ठ नर लाखों द्वारा प्रणाम किया जाता है, वह प्रभु मरा हुआ तुरन्त ले जाया जाता है । ( प. च. 69.8) 47. णिउ रामहो पासु तुरन्तएण । - विशल्या कुछ देर बाद भेज दी गई । - 48. सो रिसि सङ्ग तुरन्ते वन्दिउ । — ( वह उसे) जल्दी से राम के पास ले गया । 49. जं जाणहि तं करहि तुरन्तउ । जो समझते हो वह तुरन्त करलो । — अपभ्रंश - भारती-2 वह मुनिसंघ जल्दी से वन्दना किया गया । - ( प. च. 44.12) (प.च. 69.15) ( प. च. 68.1) ( प. च. 57.5) 5.50 तं विहिसणा परं पजम्पियं, दहमुहस्स ण कयाइ जं पिय । हे विभीषण ! तुम्हारे द्वारा यह कहा गया है जो रावण के लिए कभी प्रिय नहीं है। 51. चिरु जेण ण इच्छिउ दप्पणउ, रहे तेण णिहालिउ अप्पणउ । (प.च. 61.3) जिसके द्वारा दीर्घकाल तक ( बहुत समय तक) दर्पण नहीं चाहा गया, उसके द्वारा रथ में स्वयं देख लिया गया । ( प. च. 6.16 ) ( प. च. 6.16) 52. पढमु सरीरु ताहे रोमञ्चिउ । पच्छए णवर विसाए स्खञ्चिउ । ( प. च. 50.3) पहले उसका शरीर पुलकित हुआ किन्तु बाद में (वह) विषाद के द्वारा भरी गई । 53. पहिलउ जुज्झेवउ दिट्टि - जुज्झु । जल - जुज्झु पडीवउ मल्ल - जुज्झु । ( प. च. 4.9) पहले दृष्टि-युद्ध लड़ा जाना चाहिये, फिर जल युद्ध और मल्ल - युद्ध 54. जं जिणेवि ण सक्किउ सलिल जुज्झ पारद्ध पडीवउ मल्ल - जुज्झु । (प.च. 4.11) जब जल-युद्ध जीतने के लिए समर्थ नहीं हुआ (तो) फिर मल्ल-युद्ध प्रारम्भ किया गया।
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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