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अपभ्रंश-भारती-2
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5. धणहरु सरु सारहि छत्त-दण्डु। ज वाणहिं किउ सय खण्डु-खण्डु।
त अमरिस-कुढ़ें दुद्धरेण । संभारिय विज्ज विज्जाहरेण (प. च. 37.15) - जब बाणों के द्वारा धनुष, सर, सारथि और छत्र-दण्ड सौ-सौ टुकड़े कर दिये गये, तब
क्रोध से क्रूद्ध दुर्जय विद्याधर के द्वारा विद्या का स्मरण किया गया । 6. ज दुक्खु-दुक्खु संथविउ राउ, पडिवोल्लिय णिय घरिणिए सहाउ ।
(प. च. 37.6) - जब बड़ी कठिनाई से राजा आश्वस्त किया गया (तब) निज पत्नी द्वारा पूछा गया । 7. एवहिं सयलु वि रज्जु करेवउ, पच्छले पुणु तव-चरणु चरेवउ। (प. च. 24.5) - इस समय/अभी (तुम्हारे द्वारा) समस्त राज्य ही भोगा जाना चाहिये, पीछे फिर तप
का आचरण किया जाना चाहिये। 8. अण्णवि थोवन्तरु जाइ जाम, गम्भीर महाणइ दिट्ठ ताम । (प. च. 23.13) - और भी, जब (वे) थोड़ी दूर तक जाते हैं, तब (उनके द्वारा) गंभीर महानदी देखी गई। 9. सीयए वुतु पुत्तु महु एवहिं, छुडु वद्धउ छुडु धरउ सुखेवेहिँ। (प. च. 35.2) - सीता के द्वारा कहा गया, अभी (तुम) मेरे पुत्र (हो) । शीघ्र बढ़ो, शीघ्र इस समय
सुख धारण करो । 10. ज णिसुणिउ गाउ भयङ्करु, दासरहि धाइउ ।
(प. च. 38.9) - जब भयंकर नाद सुना गया, (तब) राम दौड़े । 11. जामहिं विसमी कज्जगई जीवह मज्झे एइ ।
तामहिं अच्छउ इयरु जणु सु-अणुवि अन्तरु देइ । (हे. प्रा. व्या. 4.406) जब जीवों के सामने विषम कार्य-स्थिति उत्पन्न होती है तब साधारण आदमी तो दूर
रहे, सज्जन भी उनकी अवहेलना करते हैं । 12. कइयहु माणेसहु राय-सिय ।
(प. च. 9.6) मैं राज-लक्ष्मी का अनुभव कब करूगी ? 2.13. जाम ण पत्त वत्त भत्तारहो, ताम णिवित्ति मज्झु आहारहो ।
(प. च. 50.10) जब तक पति के समाचार उपलब्ध नहीं हुए तब तक मेरी आहार से निवृत्ति है । 14. ताम ण जामि अज्जु जाम ण रोसाविउ मई दसाणणे । (प. च. 51.1)
जब तक मेरे द्वारा रावण क्रोधित नहीं किया गया तब तक मैं नहीं जाऊँगा । 15. जाव ण सुणमि वत्त भत्तारहो ताव णिवित्ति मज्झु आहारहो । (प. च. 38.19)
- जब तक पति की कथा नहीं सुनती हूँ । तब तक मेरी आहार से निवृत्ति रहेगी । 16. अम्हेहिं पुणु जुज्झेवउ समरे ताव तिट्ठ णयरे । (प. च. 30.3)
- हमारे द्वारा फिर युद्ध में लड़ा जायेगा, तब तक नगर में ठहरो ।