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________________ 140 5. (v) णिविसेण (vi) तक्खणेण (vii) तक्खणे (viii) forfare (ix) खणे-खणे (x) खणन्तरेण (xi) खणखणे (xii) तुरन्त (xiii) तुरन्तएण (xiv) तुरन्ते (xv) तुरन्तउ (xvi) अवारें (i) ण कमाइ (ii) चिरु (iii) पच्छए / पच्छइ (iv) पच्छा (v) पडीवउ (vi) अज्जहो (vii) पडीवा - = - ZE = हर क्षण = = * = * - = = - पलभर में तत्काल तत्काल पल भर में = कुछ देर के बाद ही क्षण-क्षण में तुरन्त जल्दी से जल्दी से तुरन्त तुरन्त कभी नहीं दीर्घकाल तक बाद में बाद में अपभ्रंश भारती-2. फिर / वापस आज से और फिर वापस संकलित वाक्य प्रयोग 1. 1. दिण्णु देव पइँ मग्गमि जइयहुँ । णियय - सच्चु पालिज्जइ तइयहुँ ॥ (प.च. 21.4) हे देव (राजन) ! आपके द्वारा दे दिया गया है, जब मैं मांगू, तब निज सत्य (वचन) पाला जाए । 2. तहिं णिवसइ मयरद्धउ जइयहु अवरु चोज्जु अवयरियउ तइयहु ॥ ( णा. च. 3.15.10 ) जब नागकुमार वहाँ निवास कर रहा था तब एक (अन्य ) आश्चर्य घटित हुआ । 3. सरि गम्भीर नियच्छिय जावेहिं, सयलु वि सेण्णु नियत्तउ तावेहिं । (प.च. 23.4) जब / जिस समय गंभीर नदी देखी गई, तब ही / उस समय ही समूची सेना लौटा दी गई । 4. एह बोल्ल निम्मादय जावेहि, ढुकु भाणु अत्थवणहो तावेहिं । (प. च. 23.9) जब / जिस समय ये वचन उत्पन्न किये गये तब ही / उस समय ही सूर्य अस्ताचल पर पहुँच गया ।
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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