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अपभ्रंश-भारती-2
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संकलित वाक्य-प्रयोग 1. 1. दसरह-जणय वे वि गय तेत्तहे । पुरवरु कउतुकमंगलु जेत्तहे ॥
(प. च. 21.2) - दशरथ और जनक दोनों वहाँ गये, जहाँ कौतुकमंगल श्रेष्ठ नगर था । 2. एत्यु ण हरिसु विसाउ करेवउ ।
(प. च. 28.12) - यहाँ/इस विषय में/इस सम्बन्ध में हर्ष और शोक नहीं किया जाना चाहिये । 3. जहिं वसइ महारिसी सच्चभूइ । ___गउ तहिं भामण्डलु जणणु लेवि ।
(प. च. 22.7) - जहाँ सत्यभूति महामुनि रहते थे, वहाँ भामण्डल पिता को लेकर गये । 4. एउ दीसइ गिरिवर-सिहरु जेत्थु । उवसग्गु भयंकरु होइ तेत्थु ।
(प. च. 32.2) - जहाँ यह श्रेष्ठ पर्वत का शिखर देखा जाता है, वहाँ भयंकर उपसर्ग है । 5. जउ जउ पवणपुत्त परिसक्कइ, तउ तउ वलु ण थक्कइ ।
(प. च. 51.13) - जहाँ-जहाँ पवनसुत जाता था, वहाँ-वहाँ सेना नहीं ठहरती थी । 6. एत्तहे-तेत्तहे वारि घरि लच्छि विसंठुल धाइ । (ह. प्रा. व्या. 4.436) - अस्थिर लक्ष्मी घर-घर पर, द्वार-द्वार पर यहाँ-वहाँ दौड़ती है । 7. केत्तहे रावणु ?
(प. च. 69.20) - रावण कहाँ है ? 8. कहिं दीसइ तहिं सुहमग्गु सारु ।
(ज. च. 1.5.11) - सारगर्भित सुख का मार्ग वहाँ कहाँ देखा जाता है ? 9. कहिं गच्छहि अच्छमि जाम हउँ ।
(प. च. 64.5) - जब तक मैं हूँ, तुम कहाँ जाओगे । 10. अण्णेत्तहे असोउ उप्पणउ ।
(प. च. 3.3) - दूसरे स्थान पर अशोक (वृक्ष) उत्पन्न हुआ ।
2.11. वुह-मण्डलु वि चऊहिं तहितिउ ।
(प. च. 2.3) - वहाँ से चार योजन बुध-मण्डल है । 12. तत्थहो वि चवेप्पिणु सुद्धमइ, हूओ सि एत्थ लंकाहिवइ । (प. च. 6.15)
- हे शुद्धमति ! वहाँ से मरकर ही तुम यहाँ लंकाधिपति हुए हो ।