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अपभ्रंश-भारती-2
13. धूमु कहन्तिहु उठ्ठिअउ ।
(ह. प्रा. व्या. 4.416) - धूआँ कहाँ से उठा । 14. धूमु कउ उट्ठिअउ ।
(ह. प्रा. व्या. 4.416) - धूम कहाँ से उठा । 15. एत्तहे जिणवर-सासणु सुन्दरु, एत्तहे जाणइ-वयणु मणोहरु ।
एत्तहे पाउ अणोवमो वज्झइ, एत्तहे विसएहिं मणु परिरुज्झइ । (प. च. 55.1) एक ओर/इधर अरहंत का सुन्दर शिक्षण है, दूसरी ओर/उधर जानकी का मनोहर मुख। एक ओर/इधर अतुलनीय पाप बांधा जा रहा है, दूसरी ओर/उधर मन विषयों से रोका
जायेगा । 16. परिपुच्छिय तुम्हे पयट्ट केत्थु, किं मायापुरिस पढुक्क एत्थु । (प. च. 69.9)
- पूछा गया - आप कहाँ से आये, क्या यहाँ (कोई) माया-पुरुष आ पहुँचा है ? 17. एउ कहिं लद्ध जलु ।
(प. च. 68.4) - यह जल कहाँ से प्राप्त किया गया है ?
3.18. कहिं चि आया हया, महीयलं गया गया । ___(प. च. 61.4)
- कहीं पर/किसी जगह आहत अश्व और हाथी जमीन पर पड़े हुए हैं । 19. कत्थइ सन्दण सयखण्ड किय, कत्थइ तुरङ्ग णिज्जीव थिय ।
(प. च. 43.1) - कहीं रथों के सैंकड़ों टुकड़े किये गये थे, कहीं निर्जीव घोड़े थे । 20. कत्थइ कप्पदुम दिट्ठ तेण ।।
(प. च. 31.6) - कहीं उसके द्वारा कल्पवृक्ष देखे गये । 21. कत्थ वि लोट्टाविय हत्थि-हड ।
(प. च. 43.1) - कहीं हाथियों के समूह लोट-पोट किये गये -
4.22. तहिं अवसरे मम्भीसन्तु मउ, सण्णहेवि दयासहो पासु गउ । (प. च. 71.14)
- उस समय अभय देता हुआ मय शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होकर रावण के पास गया। 23. सियहे पासु पयट्ट दसाणणु ।
(प. च. 73.8) - रावण सीता के निकट गया । 24. ओसरु पासहो ।
(प. च. 74.5) - (तू) पास से हट जा ।