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अपभ्रंश भारती
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डुहडुहाती हुई,".......मेंढकों की ध्वनि से टर्राती हुई, तरंगों के उद्वेल से बहती हुई, उद्घोष के शब्दों से छप-छप करती हुई, जल-प्रपातों के स्खलन और मोड़ से खलखल करती हुई और चट्टानों पर सरसराती हुई वह बह रही थी।
.........."गोला गइ दिट्ट समुन्वहंति ॥ सुसुपर - घोर - धुरुधुरुहुरंति । करि - मयरड्डोहिय - डुहडुहन्ति । डिण्डोर-सण्ड - मण्डलिउ देन्ति । ददुरय - रडिय - दुरुदुरुदरन्ति ॥ कल्लोलुल्लोलहिं उब्वहन्ति । उग्घोस - घोस . घवघवघवन्ति । पडिखलण-वलण-खलखलखलन्ति । खलखलिय • खलक्क-झडक्क देन्ति ।
31.3.2-6 क्षेमंजलि-राज द्वारा फेंकी गयी शक्ति धकधकाती हुई समरांगण में इस तरह दौड़ी मानो नभ में तड़तड़ करती बिजली ही चमक उठी हो।
धाइय धगधगन्ति समरंगणे । णं तडि तडयडन्ति णह - अंगणे ॥
31.11.7
हनुमान का विमान घंटों की टन-टन ध्वनि से झंकृत हो रहा था। रुनझुन करती हुई किंकिणियों से मुखर था । घवघव और घर-घर शब्द से गुंजित था।
........."टणटणंत - घंटा-वमालए। रणरणंत - किकिणि - सुघोसए । घवघवंत - घग्घर - विघोसए ॥
46.1.2-3
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राम ने रावण के ऊपर अभियान किया। तरह-तरह के रण-वाद्य बज उठे । डउँ डउँ-डउँ डमरु शब्द, तरडक-तरडक नाद, धुम्मुक-धुम्मुक ताल, -रु-रुं कल-कल, तक्किसतक्किस मनोहर स्वर, दुणिकिरि-दुरिगकिरि वाद्य और गेग्ग दु-गेग्गदु-घात इत्यादि अनेक भेदसंघातों से युक्त तूर्य बज उठे।
डउँ-डउँ-उउँ-डउँ-डमरुप्र-सद्देहिं । तरडक-तरडक - तरडक-पढ़े हि ॥ धुम्मुकु-धुम्मकु - धुम्मकु ताले हिं । 5-3-रुंजंत वमाले हिँ ॥ तक्किस-तक्किस-सरे हि मरणोज्जे हिं। दुणिकिटि-दुरिणकिटि-थरिमदि वज्जे हिं॥ गेग्गदु - गेग्गदु . गेग्गदु-घाऍहिं । एयाणेय - भेय संघाऍहिं ।।
56.1.8-11 ऐसे अनेक उदाहरण स्वयंभू के काव्य में पाये जाते हैं ।
3. स्पर्श बिंब
स्पर्श संवेदना प्रों के अंतर्गत शीतलता, दाहकता, कठोरता, चिक्कणता तथा रुक्षता प्रादि पाती हैं।