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अपभ्रंश भारती
सीता राम से जल मांगती है जो हिम-शीतल और शशि की तरह निर्मल हो । जलु कहि मि गवेसहो रिणम्मलउ । जं तिस-हरु हिम-ससि सीयलउ ।
___27.12.3
सीता मालती-माला की तरह कोमल हाथों से राम का आलिंगन करती है। जं प्रालिंगइ वलय - सणाहहिँ । मालइ - माला - कोमल वाहहिँ ॥
38.4.5
दधिमुख नगर में एक भी सरोवर सूखा नहीं था मानो वे पर-दुःख-कातरता से शीतल थे। जहिं ण कयावि तलायई सुक्कई । णं सोयलइँ सुठ्ठ पर-दुक्खइँ ॥
47.1.4
इसी प्रकार दाहकता एवं कठोरता की संवेदनात्मक अनुभतियों से संबंधित बिक स्वयंभू के काव्य में पाये जाते हैं ।
4. प्रास्वाद्य बिब
स्वयंभू ने प्रास्वाद्य बिंब अधिक नहीं दिये हैं । ये प्रायः वचनों की तिक्तता, क्षार या मधुरता के व्यंजक बनकर आये हैं ।
कहीं पर स्वच्छ सफेद नमक रखा था जो खल और दुष्ट मनुष्यों के वचनों की तरह अत्यन्त खारा था । कत्थइ लवण रिणम्मल तारई। खल-दुज्जण-वयण िव सु-खारइँ ॥
45.12.11 लंकासुंदरी के मुखरूपी कुहर से कड़वी बातें निकलने लगीं।
मुह-कुहर-विणिग्गय-कडुन वाय । 48.8.7 भोजन की मधुरता के बारे में कवि कहता है कि जो भी उसे खाता वह जिनवर वे वचनों की भांति मधुरतम मालूम होता था। जहिं जें लइज्जइ तहिं जें ताहि गुलियारउ जिणवर-वयण जिह ।
50.11.14 वज्रकर्ण भोजन लेकर राम के पास पहुंचता है । वह ईख-वन की तरह मधुर रस से भरा था, उद्यान की तरह अत्यंत सुगंधित ।।
बहुविह-खण्ड-पयारे हिँ वड्ढिउ । उच्छु -वणं पिव मुह रसियड्ढिउ । उज्जारणं पिव सुट्ट सुप्रंधउ । “...."
25.11.4-5