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________________ अपभ्रंश भारती ___ श्याम रंग की यमुना एवं उज्ज्वल गंगा का सुन्दर बिंब कवि यों प्रस्तुत करता है कि यमुना पार्द्र मेघों के समान श्यामरंग की थी जो नागिन की भांति काली थी और जल से ।.........."मानो धरती पर खींची गई काजल की लकीर हो । गंगा की तरंगें जल से एकदम स्वच्छ थीं, चंद्रमा और शंख के समान जो शुभ्र थीं। ......"जा प्रलय-जलय-गवलालि वण्ण । जा कसिरण भअंगि व विसहो भरिय । कज्जल रेह व णं धरए धरिय ।। थोवंतरे नल - णिम्मल तरंग । ससि-संख-समप्पह दिट्ठ गंग ॥ 69.7.6-8 प्रभात का वर्णन करते हुए कवि प्रकृति का एक सुंदर बिंब खड़ा कर देता है। सवेरे चंद्रमारूपी पक्षी उड़ गया और अंधकाररूपी मधुकर चला गया। रात्रिरूपी पेड़ के नष्ट होने पर तारारूपी फल भी झड़ गए। चंद-विहंगमे समुड्डावियए (गय) अन्धार महुयरे ।। तारा कुसुम-णियरें परियलिएँ मोडिए रयणि तरुवरे । 70.1-1 राम और रावण की सेनाओं में युद्ध हो रहा था । सूर्य डूब गया । लगता था प्राकाशरूपी वृक्ष में सूर्यरूपी सुंदर फल लग गया है। दिशाओं की शाखाओं से वह वृक्ष शोभित हो रहा था। संध्या के लाल-लाल पत्तों से वह युक्त था। बहविध मेघ उसके पत्तों की छाया के समान लगते थे । ग्रह और नक्षत्र उसके फूलों के समूह थे । भ्रमर-कूल की भांति उस पर धीरे धीरे अंधकार फैलता जा रहा था। वह अाकाशरूपी वृक्ष बहुत बड़ा था। परन्तु यश की लोभिन निशारूपी नारी ने उसके सूर्यरूपी फल को निगल लिया। घने अंधकार ने संसार को ढक लिया मानो उसने दोनों सेनाओं के युद्ध को रोक दिया। "सयल - वियंतर - दोहर-डालहों। उदिस-रंखोलिर-उवसाहहो । संझा - पल्लव-णियर - सणाहहों ॥ वहुवव प्रभ-पत्त-सच्छायहों । गह एक्खत्त - कुसुम - संघायहो। पसरिय अंधयार-भमर-उलहों । तहो पायास-दुमहों वर-विउलहो । णिसि णारिएँ खड्डे वि जस-लुद्धएँ। रवि फलु गिलिउ णाई णियसद्धए । वहल तमाले जगु अंधारिउ । विहि मि वलह णं जुज्झु रिणवारिउ ॥ 63.11.3-8 शरद् के आगमन से वनवृक्षों की कांति और छाया सहसा सुन्दर हो उठी । नई नलिनियों के कमल ऐसी हंसी बिखेर रहे थे मानो कामिनीजनों के मुख ही हंस रहे हों। दृश्य ऐसा लग रहा था मानो अपने निरंतर निकलनेवाले धनरूपी धवल कलशों से प्राकाशरूपी महागज ने शरदकालीन वसुधा की सौंदर्य-लक्ष्मी का अभिषेक कर उस प्रबोधिनी को कभगिरि पर अधिष्ठित कर दिया हो।
SR No.521851
Book TitleApbhramsa Bharti 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1990
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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