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पउमचरिउ में बिंब
-डॉ. जे. एस. कुसुमगीता
बिंब काव्य का अनिवार्य उपादान है। वास्तव में बिंब ही काव्य में भाव तथा विचार का साधक है । संसार की सभी भाषाओं के साहित्य में बिंब की प्रधानता रही है। कवि के ऐंद्रिक संवेदनों की राग-संपृक्त अभिव्यक्ति ही बिंब का रूप धारण करती है । अपने वर्ण्य विषय की सफल सार्थक अभिव्यंजना के लिए कवि किसी अन्य साधन का उपयोग करे या न करे, बिंबों का उपयोग वह अवश्य करता है।
बिंब अनिवार्य रूप में मूर्त ही होता है । चूंकि ऐंद्रिय अनुभवों में चाक्षुष अनुभव-रूप सर्वाधिक मूर्त होता है, बिब में रूप-तत्त्व की प्रधानता होती है । स्वयंभू के 'पउमचरिउ' में बिंबों की भरमार है और अधिकांश बिंब प्रकृति के क्षेत्र से गृहीत हैं। इन बिंबों को सात वर्गों में बांटा जा सकता है
1. जलीय बिंब 2. प्राकाशीय बिंब 3. पार्थिव बिंब 4. वायव्य-बिंब 5. तेजस बिंब 6. ऋतु एवं काल संबंधी बिंब 7. मानवेतर प्राणी-बिंब ।
संवेदनों के आधार पर बिंब पांच प्रकार के हो सकते हैं1. चाक्षुष या दृश्य 2. श्रव्य 3. स्पर्श 4. प्रास्वाद्य 5. घ्राण ।
'पउमचरिउ' में उपर्युक्त सभी बिंब पाये जाते हैं । 1. दृश्य बिब
प्रत्येक कवि के काव्य में दृश्य-बिंब ही अधिक होते हैं। स्वयंभू के काव्य में भी इसी की बहुलता है।