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अपभ्रंश भारती
प्राथमिक रंगों से निर्मित यह चित्र उस समय उभरता है जब भरत राम के चरणों में सिर झुका कर नमन करते हैं। राम के चरण लाल हैं और केशपाश से प्राच्छादित सिर श्याम । लाल चरणों पर रखा हुआ सिर ऐसा प्रतीत होता है मानो दो लाल कमलों के बीच एक नीला कमल खिला हो [ साहित्य में नीला और काला समान रंग माने जाते हैं ] । इससे कविसमय की भी पूर्ति हो गई है कि सिर और चरण दोनों ही कमल से उपमित हैं और साथ ही रंग साम्य भी है। साथ ही दार्शनिकता का रूप भी उभर आया है-- -- प्रास्था और अनुराग में सब समान हो गया है ।
एक अन्य चित्र प्राथमिक रंगों की रंजित एक योद्धा का दृश्य सामने आता
संयोजना से उस समय | योद्धा के वक्ष में बारण
उभरता है जब रक्त से केवल प्रविष्ट ही नहीं हैं, बल्कि छाती फोड़कर दूसरी तरफ निकल गए हैं जहां वे ईषत् उठे हुए दीख रहे हैं । योद्धा रक्त से रंजित है और बाण काला है अतः वह काला भ्रमर जैसा दीख पड़ता है और रक्त से रंजित वक्षस्थल लाल कमल - समूह जैसा प्रतीत होता । रक्तिम आभा से युक्त गहरे चटक लाल रंग के कमल खिले हैं और फूलों पर भ्रमर रस-पान के लिए ठहरे हुए हैं । इस प्रकार यह - चित्र काले और लाल रंग से पूरा होता है। दोनों रंग अपनी-अपनी चटक और दीप्ति लिये हैं, एक दूसरे को भी उद्दीप्त कर रहे हैं और एक अन्य रंग की आभा भी विकीर्ण कर रहे हैं ।
एकवर्णी रंगीय चित्र — व्यतिरेकी श्रौर प्राथमिक रंगों से निर्मित चित्रों के अतिरिक्त पउमचरिउ में एकवर्णी तकनीक से निर्मित रंग चित्र भी मिलते हैं, यथा
विन्भमहाव-भाव-भू भङ्गरच्छराई । जायइँ सुर - विमाणइं धूलिधूसराई ॥
ताव हेइ घट्टणेण करालउ । उच्छलियउ सिहि-जाला - मालउ ॥ सिवियहिँ छत्त - घऍहिँ लग्गन्ति । अमर - विमाण सयाइँ बहन्ति ॥ पुणु पच्छले सोणिय जल धारउ । ताहिं असेसु दिसामुहु सित्तउ । प्रणउ परियत्तउ गयरगङ्गहों । जय वसुन्धरि रुहिरायम्विरि । करि - सिर- मुत्ताहले हिँ विमोसिय ।
रय पसमरणउ हुप्रास - रिणवारउ ॥ थिउ गहु णाई कुसुम्मऍ घित्तउ ॥ णं घुसिणोलिउ णह - सिरि- श्रङ्गहीँ ॥ सरहस - सुहड - कबन्ध - पणच्चिरि
संझ व ताराइण्ण पदोसीय ||
युद्ध क्षेत्र में छत्र पताकाएँ - पालकियाँ आदि जल रहे हैं, आग की कराल लपटें उठी
हैं । युद्ध भूमि रक्तपात से लाल है । धूल उड़ रही है । गज-मोती बिखरे पड़े हैं । यह दृश्य संध्या के चित्र में रूपायित होता है जो एकवर्णी तकनीक के आधार पर एक लाल रंग के विविध प्रभाभेदों की संयोजना से निर्मित है— पीत प्राभा लिये आग का लाल रंग, रक्त का गहरा चमकदार लाल रंग, मटमैला लाल रंग, कुसुम्भ व कुमकुम का लाल रंग, ये सब प्रभाभेद संध्या का चित्र बनाते हैं जो कल्पना के सादृश्य में कौंधते हैं । लाल रंग प्राथमिक रंग भी है जो अपनी मूल चटक और चमक को बनाए रहता है और अनेक अन्य रंग छवियों को भी बिखेरता रहता है | इस एकवर्णी तकनीक से चित्र में दृक् की व्यापकता, काल की गति,