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________________ 70 अपभ्रंश भारती प्रकाश व छाया आदि संश्लिष्ट रूप में संवेद्य हुए हैं। लालिमा की इस पृष्ठभूमि में श्वेत चमकते गज-मोती तारों से भरी संध्या का चित्र ही पूरा नहीं कर देते हैं, उसे दीप्ति भी देते हैं और अधिक गहरा व चटकीला भी बना देते हैं । 3. रेखीय चित्र - रेखीय गतिशील मूक चित्र वि पुरन्दरु णिग्गउ श्रइरावऍ चडिउ | णं विज्झहों उपरि सरय - महाघणु पायडिउ 118 'पउमचरिउ' के कम ही चित्र रेखीय हैं, प्रायः मिश्रित ही मिलते हैं । उक्त चित्र की प्रमुख रेखाएँ ऊँचाई और विस्तार संबंधी हैं, साथ ही भौतिकी की गति के नियम से हैं । प्रकाश को छूता ऊँचा, चारों ओर फैला, वनस्पति से भरा विन्ध्याचल पर्वत है । रंग भी उसका काला है । उस पर शरद के धवल धूसरित बादल मंद-मंथर गति से प्रा-जा रहे हैं । बादलों की गति ने पर्वत को भी गति प्रदान कर दी है। इनमें आभिजात्य घुला-मिला है और प्रभाव के रूप में छिटका पड़ रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऊँचे फैले और काले हाथी पर इन्द्र बैठा हो । इन्द्र ऐश्वर्य का प्रतीक है, प्रशासन और संरक्षण का अर्थात् श्राभिजायका । रेखाएँ काले और श्वेत रंग में उभरी हुई हैं और वक्र हैं । रेखीय मुखरित गतिशील चित्र पहन्तरे भयङ्करो । वलो व्व सिङ्ग - दोहरो । कहिँ जे भीम - कन्दरो कहि जि रत्तचन्दणो । कहि जि दिट्ठ-छारया । कहि जिसीह - गण्डया । कहि जिमत्त - भिरा । कहि जि पुच्छ - दोहरा । कहि जि थोर कन्धरा । कहि जि तुङ्गङ्गया । कहि जि श्रारणुष्णया । 11 साल- छिण्ण-कक्करो रिणयच्छिम्रो महीहरो ॥ भरन्त-रगीर - णिज्झरो ॥ तमाल - ताल - वन्दणो || लवन्त मत्त मोरया || धूणन्त-पुच्छ - वण्डया गुलुग्गुलन्ति कुंजरा || किलिक्लिन्ति वाणरा ।। परिब्भमन्ति सम्बरा ।। हयारि- तिक्खसिङ्गया || कुरङ्ग वुण्ण - कण्णया ||१ 11 - चित्र वंशस्थल के पर्वत का है । इस में सूक्ष्म - स्थूल रेखाएं हैं, विविध नैसर्गिक ध्वनियां हैं और एक संश्लिष्ट गति है । प्रकृति का प्रायाम ही इसके द्वारा विस्तृत हुआ है, गहराई भी बढ़ी है, स्वच्छन्दता और विविधता भी उभरी है। हिंस्र जीवों के विशेषण 'दीहरा', 'थोर', 'तुंग', 'तिक्ख' [ लम्बा, स्थूल, तीखा, ऊँचा ] पर्वत के अंग बन गए हैं- इस प्रकार दोहरे हो एक हैं और भौतिकी के द्रव्यमान की अवधारणा पूरी करते हैं । शिखर ऊँचे शृंगों में ही नहीं दीख पड़ते, पूरा पर्वत ही वनैला पशु हो गया है । इस तरह पर्वत में पशुभाव और
SR No.521851
Book TitleApbhramsa Bharti 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1990
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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