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अपभ्रंश-भारती
अनि हणु (हरण ) विधि व 2 / 1 सक भणन्तु ( भणभणन्त ) वकृ 1 / 1 उण्हालउ ( उन्ह + प्राल उण्हाल + उण्हाल ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक,
(3)
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धग धग धग धगन्तु ( धग धग धग धग ) वकृ 1 / 1 उद्घाइउ ( उद्धाइ ) भूकृ 1 / 1 अनि हस हस हस हसन्तु ( हस हस हस हस ) वकृ 1 / 1 संपाइउ ( संपाइल ) भूकृ 1/1 अनि, (4)
जल जल जल जल जल ( जल जल जल जल जल ) व 3/1 अक पचलन्तउ ( प चल + पचलन्त - पचलन्त ) वकृ 1 / 1 'अ' स्वाधिक जालावलि - फुलिङ्ग [ ( जाला ) + (आवलि) + (फुलिङ्ग)] [ ( जाला ) - ( प्रावलि ) - ( फुलिङ्ग) 2/2] मेल्लन्त मेल्लन्त + मेल्लन्तन) वकृ 1 / 1 'अ' स्वार्थिक,
(मेल्ल (5)
धूमावलि धयदण्डुभेप्पिणु [ ( धूम) + ( प्रावलि) + ( धय) + (दण्ड) + ( उब्भेष्पिणु ) ] [ ( धूम ) - ( प्रावलि ) - ( धय ) - ( दण्ड ) + ( उब्भ + एप्पिणु) संकृ] वरवाउलि-खग्गु [(वर) वि - (वाउल्लि ) - (खग्ग) 2 / 1 ] कड्ढेष्पिणु (कड्ढ + एप्पिणु) संकृ, (6)
झडझड झड झडन्तु ( झड झड झड झड ) वकृ 1 / 1 पहरन्तउ ( पहर पहरन्तन ) वकृ 1 / 1 'अ' स्वार्थिक. तरुवर - रिउ - भड - थड [ (तरु) - ( वर ) वि (भड ) - ( थड) 2 / 1 ] भज्जन्तउ ( भज्ज - भज्जन्त े भज्जन्त ) वकृ 1 / 1 'अ'
पहरन्त
( रिउ ) - स्वार्थिक,
(7)
- महाग - घड [ ( मेह) - (महा) वि - ( गय ) - ( घड ) 2 / 1 ] विहडन्त विहडन्त विहडन्त) वकृ 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक जं ( अ ) =
( विहड
| = जब उण्हालउ ( उण्हाला ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक दिट्ठ (दिट्ठ) भूकृ 1 / 1 अनि भिडन्त ( भिड भिडन्त भिडन्त) व 1 / 1 'अ' स्वार्थिक,
(8) (a) 1 / 1 अप्फालिउ ( प्रष्फल ( प्रे.) प्रप्फाल (भूकृ ) + अप्फालिन ) भूकृ 1/1 पाउसेण ( पाउस) 3 / 1 तडि - टङ्कार - फार [ ( तडि ) - ( टङ्कार ) - ( फार ) 2 / 1] दरिसन्ते ( दरिस रिसन्त) व 3 / 1 चोएवि ( चोप्र + एवि ) संकृ जलहर - हत्थि [ (जलहर ) - (हत्थि ) 2/2] हड (हड) 2/2 वि गीर - सरासरिण [ ( णीर) - ( सरासरण (स्त्री) → सरासणी) 1/2 ] मुक्क (मुक्क) भूकृ 1 / 2 अनि तुरन्ते ( अ ) - तुरन्त,
=
(9)
जब पावस ( वर्षा ऋतु का ) राजा गरजा, (तो) ग्रीष्म द्वारा धूल - वेग ( आँधी) भेजी गई ( 1 ) | ( वह ) ( धुल ) मेघ - समूह से जाकर चिपक गई, (फिर) बिजली रूपी तलवार के प्रहारों से (वह) (धूल) छिन्न-भिन्न कर दी गई ( 2 ) । ( इसके परिणामस्वरूप ) जब (धूल) विमुख चली (तो) भयंकर उष्ण ( ऋतु) (पावस राजा को ) 'मारो' कहती हुई उठी ( 3 ) | (और) खुब जलती हुई ऊँची दौड़ी (तथा) उत्तेजित होती हुई ( पावस - राजा की ओर प्रवृत्त हुई ( 4 ) और ( उस प्रोर) कूच करती हुई तेजी से जली, (तब ) ( उष्ण) लपट की श्रृंखला से चिनगारियों को छोड़ते हुए ( आगे चली ) (5) । ( औौर) जब उष्ण ( ऋतु ) धूम की श्रृंखला के ध्वजदण्डों को ऊँचा करके, तूफानरूपी श्रेष्ठ तलवार को खींचकर ( 6 ), झपट मारते हुए और प्रहार करते हुए, श्रेष्ठ वृक्षों रूपी शत्रु योद्धा - समूह को