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अपभ्रंश-भारती
नष्ट करते हुए (7), मेघरूपी महा हाथियों की टोली को खण्डित करते हुए (पावस राजा से) भिड़ती हुई दिखाई दी (8)।।
बिजली की टंकार और चमक दिखाते हुए पावस के द्वारा धनुष ताना गया और बादलरूपी हाथीघटा को प्रेरित करके (उसके द्वारा) जलरूपी तीर तुरन्त छोड़ दिए गए।
जल-वाणासणि-घायहिं घाइउ । गिम्भ-नराहिउ रणे विणिवाइउ ॥1॥ दद्दुर रडेवि लग्ग णं सज्जरण । णं गच्चन्ति मोर खल दुज्जण ॥ 2 ॥ णं पूरन्ति सरिउ अक्कन्दं । कइ किलकिलन्ति प्राणन्दें ॥ 3 ॥ णं परहुय विमुक्क उग्घोसें। णं वरहिण लवन्ति परिप्रोसें ॥4॥ णं सरवर बहु-अंसु-जलोल्लिय । णं गिरिवर हरिसें गजोल्लिय ॥ 5 ॥ णं उण्हविन दवग्गि विनोएं । णं पच्चिय महि विविह-विणोएं ॥ 6 ॥ रणं प्रथमिउ दिवायर दुक्खें । रणं पइसरइ रयरिण सइँ सुक्खें ॥7॥ रत्त-पत्त तरु पवणाकम्पिय । 'केण वि वहिउ गिम्भु' णं जम्पिय ॥8॥ घत्ता-तेहएँ काले भयाउरएँ वेण्णि' मि वासुएव-वलएव ।
___ तरुवर-मूले स-सीय थिय जोगु लएविणु मुणिवर जेम ॥ 9 ॥
जल वाणासणि घाहिं [(जल) (वाणासण (स्त्री)--वागासणी→वाणासणि1)(घाय) 3/2] घाइउ (घाय=घाअ→घाइप) भूकृ 1/1 गिम्भ-नराहिउ [(गिम्भ)(नराहिन) 1/1] रणे (रण) 7/1 विरिणवाइउ (विणिवाइअ) भूकृ 1/1 अनि, (1)
__1. समास में रहे हुए स्वर परस्पर में ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व अक्सर हो जाया करते हैं । (हेम प्रा. व्या. 1-4)।
वदुर (ददुर) 1/2 रडे (रड) 7/1 वि (अ)=इसलिए लग्ग (लग्ग) भूकृ 1/2 अनि एं (अ) =की तरह सज्जण (सज्जण) 1/2 णच्चन्ति (णच्च) व 3/2 अक मोर (मोर) 1/2 खल (खल) 1/2 वि दुज्जण (दुज्जण) 1/2 वि,
(2) णं (अ) =मानो पूरन्ति (पूर) व 3/2 सक सरिउ (सरि) 1/2 प्राक्कन्द (प्राक्कन्द) 3/1 कइ (कइ) 1/2 किलकिलन्ति (किलकिल) व 3/2 अक प्राणन्हें (प्राणन्द) 3/1,
(3) रणं (अ)=मानो परहुय (परहुय) 1/2 विमुक्क (विमुक्क) भूकृ 1/2 अनि उग्घोसें। (उग्घोस) 3/1 वरहिण (वरणिह) 1/2 लवन्ति (लव) व 3/2 सक परिप्रोसे (परिमोस) 3/1,
__1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे. प्रा. व्या. 3-137)।
__णं (म)=मानो सरवर [(सर)-(वर) 1/2 वि] वहु-अंसु-जलोल्लिय [(वहु) वि-(अंसु)-(जल)-(उल्लिय) 1/2 वि] गिरिवर [(गिरि)-(वर) 1/2 वि] हरिसें (हरिस) 3/1 गजोल्लिय (गजोल्लिय) 1/2 वि,
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