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अपभ्रंश भारती
अधिकरण कारक एकवचन में हि, बहुवचन में हि, सम्बोधन कारक एकवचन व बहुवचन में शून्य विभक्ति का प्रयोग मिलता है, कहीं-कहीं बहुवचन में 'हो' का प्रयोग प्राप्त हो जाता है। कर्ता और कर्म एकवचन में शून्य विभक्ति का प्रयोग मिलता है यथा
शून्य-अनंगकुसुम, चन्दलेह, गाहा-लक्खणु, तथा बहुवचन में 'उ' का यथा--- उ--- कण्ण उ करण एकवचन में एँ और बहुवचन में हि का प्रयोग स्वयंभू ने किया है यथाए-महिलाएँ हि-विज्जहिं तथा अपादान एकवचन में हे चिह्न का प्रयोग मिलता हैहे-सुमितहे, सीयहे और अधिकरण बहुवचन में हिं का प्रयोग, यथामन्दोदरि-सीयाएविहिं
पउमचरिउ महाकाव्य में अपादान व सम्बन्ध कारक का बहुवचन तथा अधिकरण कारक का एकवचन स्त्रीलिंग अकारान्त व प्राकारान्त का प्रयोग शून्यवत है ।
स्त्रीलिंग अकारान्त शब्द के लिए जो प्रत्यय पउमचरित में प्रयुक्त हैं वे ही प्रत्यय स्त्रीलिंग में इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, और ऊकारान्त में पाये जाते हैं ।
इस प्रकार स्त्रीलिंग शब्दों में अविकारी और विकारी कारकों का विधान अधिक स्फुट और स्पष्ट है और शून्य एवं हि विभक्ति से समृद्ध माधुनिक भारतीय भाषाओं में कारक विधान का आधार अपभ्रंश भाषा की संरचना का ही विकसित रूप है।