SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश भारती 25 ___एमिः> एमि> एहिं । एहिं> एहि विकास हुआ। दूसरा रूप (म) अहिं> अहि । देखिए अजयरेहि, सिरि-णासेहि, उर-कर-चरण-कण्ण-णयणासेहिं, करेहिं, सहस-सहजसरेहिं, उभय-करेहि, सहि, पायोरहिं । ऍ=करें उ=उज्वलु इंवायरणपुराण हि-तुरगेहिं, मत-मायंगेहि, सिविया-जणेहि, पवर-विपाणेहि, वाहणहिं निविभक्तिक प्रयोग - वर करवाल-हत्थ 3. संप्रदान, अपादान और संबंध एकवचन के विभक्ति रूप . .अपादान हे-वण-वणिमहे, सुह-जणिमहे, उज्जहे, दुग्गज्झहे एण-जमेण ए-हुप्रासे, काले, विणासे, अपभ्रंश साहित्य में सम्बन्ध कारक एकवचन के चिह्न सु, हो, हु, स्स, ह तथा अ या शून्य है परन्तु स्वयंभू ने अपने काव्य पउमचरिउ में 'हो' और 'स्स' का प्रयोग किया है। जिणिन्दहो, परणिन्वहो, गिरि-वेयड्डहो, रावणस्स । संप्रदान, अपादान और संबंध के बहुवचन के विभक्ति रूप हवरंगणाहँ, घेणुवाह, णराहिवाह, हुँ-गन्दगहुँ, सन्दणहुँ, णयवराहुँ। हयवराहुँ, मण्डलाहुँ, हलाहुँ, इस महाकाव्य में स्वयंभू ने सम्बन्ध कारक बहुवचन में हं का प्रयोग तो किया ही है, इसके अतिरिक्त हिं का भी प्रयोग सुलभ है। हं=कन्वरण रयणहं, मि-तिहुअण-परमेसरहं हिंप्रमर-कुमारेहि, उत्तरदाहिण-संड्ढिहिं स्त्रीलिंग प्रकारान्त या प्राकारान्त रूप स्त्रीलिंग अकारान्त व प्राकारान्त कर्ता व कर्म एकवचन में शून्य विभक्ति प्रत्यय प्रथवा कभी-कभी (बहुत कम) 'उ' प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है तथा बहुवचन में 'उ' एवं 'ओ' का ग प्राप्त है। उक्त 'उ' प्रत्यय के विषय में तर्कवागीश का मत स्पष्ट है, "स्त्रियां सुपो लुक प्रकृतेश्च ह्रस्वः स्याद्वा न वा" अर्थात् स्त्रीलिंग में सु का लोप और प्रकृति को ह्रस्व विकल्प से होता है। तदन्तर इहान्यतोऽपिक्वचिद् उ प्रयोज्यो । 'राहीउ बालाउ कण्हु' राहीउ बालाउ= राधावाला । स्त्रीलिंग में प्रत्यय के विकल्प अल्प हैं। करण कारक एकवचन में ए (ह्रस्व रूप ह) बहुवचन में भी वही रूप, अपादान एवं सम्बन्ध कोरक एकवचन में है, बहुवचन में हुँ,
SR No.521851
Book TitleApbhramsa Bharti 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1990
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy