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अपभ्रंश भारती
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___एमिः> एमि> एहिं । एहिं> एहि विकास हुआ। दूसरा रूप (म) अहिं> अहि । देखिए
अजयरेहि, सिरि-णासेहि, उर-कर-चरण-कण्ण-णयणासेहिं, करेहिं, सहस-सहजसरेहिं, उभय-करेहि, सहि, पायोरहिं ।
ऍ=करें उ=उज्वलु इंवायरणपुराण हि-तुरगेहिं, मत-मायंगेहि, सिविया-जणेहि, पवर-विपाणेहि, वाहणहिं
निविभक्तिक प्रयोग - वर करवाल-हत्थ 3. संप्रदान, अपादान और संबंध एकवचन के विभक्ति रूप . .अपादान
हे-वण-वणिमहे, सुह-जणिमहे, उज्जहे, दुग्गज्झहे एण-जमेण ए-हुप्रासे, काले, विणासे,
अपभ्रंश साहित्य में सम्बन्ध कारक एकवचन के चिह्न सु, हो, हु, स्स, ह तथा अ या शून्य है परन्तु स्वयंभू ने अपने काव्य पउमचरिउ में 'हो' और 'स्स' का प्रयोग किया है।
जिणिन्दहो, परणिन्वहो, गिरि-वेयड्डहो, रावणस्स । संप्रदान, अपादान और संबंध के बहुवचन के विभक्ति रूप
हवरंगणाहँ, घेणुवाह, णराहिवाह, हुँ-गन्दगहुँ, सन्दणहुँ, णयवराहुँ। हयवराहुँ, मण्डलाहुँ, हलाहुँ,
इस महाकाव्य में स्वयंभू ने सम्बन्ध कारक बहुवचन में हं का प्रयोग तो किया ही है, इसके अतिरिक्त हिं का भी प्रयोग सुलभ है।
हं=कन्वरण रयणहं, मि-तिहुअण-परमेसरहं
हिंप्रमर-कुमारेहि, उत्तरदाहिण-संड्ढिहिं स्त्रीलिंग प्रकारान्त या प्राकारान्त रूप
स्त्रीलिंग अकारान्त व प्राकारान्त कर्ता व कर्म एकवचन में शून्य विभक्ति प्रत्यय प्रथवा कभी-कभी (बहुत कम) 'उ' प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है तथा बहुवचन में 'उ' एवं 'ओ' का
ग प्राप्त है। उक्त 'उ' प्रत्यय के विषय में तर्कवागीश का मत स्पष्ट है, "स्त्रियां सुपो लुक प्रकृतेश्च ह्रस्वः स्याद्वा न वा" अर्थात् स्त्रीलिंग में सु का लोप और प्रकृति को ह्रस्व विकल्प से होता है। तदन्तर इहान्यतोऽपिक्वचिद् उ प्रयोज्यो । 'राहीउ बालाउ कण्हु' राहीउ बालाउ= राधावाला । स्त्रीलिंग में प्रत्यय के विकल्प अल्प हैं। करण कारक एकवचन में ए (ह्रस्व रूप ह) बहुवचन में भी वही रूप, अपादान एवं सम्बन्ध कोरक एकवचन में है, बहुवचन में हुँ,