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'पउमचरिउ' पर आधारित
संधि-विधान
-सुश्री प्रीति जैन
अपभ्रंग में संधि का स्वरूप सर्वथा नया है, उसकी संरचना नई है । अाज तक इस पर विचार नहीं हया है। इसलिए आधुनिक भारतीय भाषाओं के व्याकरण में जहां कहीं भी संधि का परिच्छेद आता है वहां संस्कृत की नियमावलि उद्धृत करके उन भाषाओं में संस्कृत के शब्द ढूंढ कर उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत कर दिए जाते हैं। इनमें भाषा का मूलरूप पीछे छूट जाता है, पादत्त प्रधान हो जाता है और वही व्याकरण की परिसीमा में बांध दिया जाता है । इसलिए आधुनिक भारतीय भाषामों में सही संधि-नियम न खोजे-शोधे गए हैं और न पढ़े-पढ़ाए गए हैं । यह सभी जानते हैं कि इन भाषाओं की जननी अपभ्रंश है और अपभ्रंश के व्याकरणों में भी इस प्रोर कोई अंगुलिनिर्देश नहीं है। इसलिए यह सोचा गया कि अपभ्रंश में निगमनशैली से संधि रचना/संरचना के नियम देखे जाएँ जिससे उनका एक ढांचा तैयार हो सके । प्रादत्त शब्दों के कारण अपवादों का होना भी अपरिहार्य है अतः उनका निर्देश और उनसे न पड़नेवाले प्रभाव का संकेत दोनों ही नियम-निर्धारण में आवश्यक होते हैं। उन अपवादों की भी उस नियम की विस्तृति से सही-सही व्याख्या आवश्यक होती है । इस तरह के अध्ययन से अपभ्रंश के व्याकरण में एक नए अध्याय का प्रारंभ तो होगा ही, आधुनिक भारतीय भाषाओं की संधि-संरचना को खोजने-शोधने के लिये एक पीठिका भी तैयार होगी। इस संधि-रचना