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कारक - विधान
-डॉ. राम बरन पाठक
अपभ्रंश भाषा में दो ही कारक हैं-1. ऋजु या अविकारी कारक और 2. तिर्यक् या विकारी कारक । ऋजु या अविकारी कारक में कर्ता, कर्म और संबोधन की विभक्तियों का विधान है जिनमें शून्य विभक्ति का प्रचलन विशेष हो गया था । शेष विभक्तियां तिर्यक् या विकारी कारक का निर्माण करती हैं । इनमें कुछ शब्दों में तृतीया और सप्तमी तथा चतुर्थी, षष्ठी और पंचमी की विभक्तियां समान हैं और कुछ में सब विभक्तियां । 'हि' विभक्ति के
· बहुल प्रयोग ने इन्हें एकमेक कर दिया है ।
अविकारी कारक
कर्ता और कर्म एकवचन के विभक्तिरूप
पुल्लिंग और नपुंसकलिंग में कर्त्ता तथा कर्म कारक एकवचन का चिह्न अपभ्रंश व्याकररण में साधारणतया समान रहता है। इस नियम तथा सिद्धान्त का प्रतिपादन पउमचरिउ काव्य में विद्यमान है ।
अकारान्त शब्द रूप में श्रानेवाले प्रत्यय
उ — इस प्रत्यय का प्रयोग अपभ्रंश भाषा में श्रमित हुआ है जिसकी पुष्टि हेमचन्द्र, क्रमदीश्वर, त्रिविक्रम, सिंहराज, तर्कवागीश और मार्कण्डेय ने की है । कालिदास से लेकर आज