SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विश्वास करो जो णरवइ अइ सम्माण करु, सो पत्तिय अत्थ-समत्थ हरु । जो होइ उवायणे वच्छलउ, सो पत्तिय विसहरु केवलउ । जो मित्त प्रकारणें एइ घरु, सो पत्तिय दुठ्ठ कलत्त-हरु । जो पन्थिय लिय-सणेहियउ, सो पत्तिय चोरु प्रणेहियउ । जो गरु अत्थकएँ लल्लि-करु, सो सत्तु णिरुत्तउ जीव-हरु । जा कुलवहु सवहे हि ववहरइ, सा पत्तिय विरुय-सय करइ। भावार्थ-जो राजा प्रति सम्मान दिखाता है, विश्वास करो कि वह धन और शक्ति का हरण करनेवाला होता है । जो अधिक उपहार देने में रुचि दिखाता है, विश्वार करो कि वह विषधर है । जो मित्र अकारण ही घर आता है, विश्वास करो कि वह घर के शान्ति का हरण करनेवाला है। जो राहगीर अधिक प्रेम का दिखावा करता है, विश्वास करो कि वह स्नेहहीन, चोर है । जो हमेशा चापलूसी करता है, वह निश्चय ही प्राणों क हरण करनेवाला शत्रु है । जो कुलवधू शपथों (सौगन्धों) के माध्यम से व्यवहार करती है विश्वास करो वह अनेक विरूपताएं करनेवाली है। पउमचरित 36.12
SR No.521851
Book TitleApbhramsa Bharti 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1990
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy