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अपभ्रंश रचना सौरभ
-डॉ. कमलचन्द सोगानी
उत्थानिका
अपभ्रंश एक अति प्राचीन लोक-भाषा है। इसका विपुल साहित्य आज भी वर्तमान है । प्रान्तीय भाषाएं और राष्ट्र-भाषा हिन्दी इसी के विकसित रूप हैं । अतः इस भाषा का सीखना-सिखाना कई दृष्टियों से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसी बात को ध्यान में रखकर 'अपभ्रंश रचना सौरभ' नामक पुस्तक की रचना की गई है । उसका कुछ अंश 'अपभ्रंश भारती' में दिया जा रहा है।
इस पुस्तक के पाठों को एक ऐसे क्रम में रखा गया है जिससे पाठक सहज-सुचारु रूप से अपभ्रंश भाषा के व्याकरण को सीख सकेंगे और अपभ्रंश में रचना करने का अभ्यास भी कर सकेंगे। अपभ्रंश में वाक्य-रचना करने से ही अपभ्रंश का व्याकरण सिखाने का प्रयास किया गया है। यहां ध्यान देने योग्य है कि हेमचन्द्राचार्य के अपभ्रंश व्याकरण के सूत्रों का आधार इस प्रस्तुत पुस्तक के पाठों में लिया गया है । अन्य रूप जो अपभ्रंश साहित्य में प्रयुक्त हुए हैं उनको 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के दूसरे खण्ड में दिया जायेगा। व्याकरण के जो पक्ष इसमें छूट गये हैं उनको भी दूसरे खण्ड में ही दिया जायेगा। पाठकों के सुझाव मेरे बहुत काम के होंगे।