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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११८] શ્રી. જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष : २१ इस प्रतिमें — २ निर्विग्रहं वसु - शिवनेत्र - वस्वेंदु संवत्सरे मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदायां तिथौ संपूर्णा ॥ इस 'रघुवंश - टीका' का परिमाण १३००० श्लोकोंका है । सुमतिविजयकी तो ये दो ही रचनाएँ प्राप्त हैं । इनमें से 'मेघदूत - टीका 'की दो प्रतियाँ और 'रघुवंश टीका ' की चार प्रतियाँ भण्डारकर ऑरियेन्टल इन्स्टीट्यूट - पूना में प्राप्त हैं । खुवंश टीका की एक प्रति कलकत्ते के श्री बद्रीदासजी के म्युजियम में भी हमारे अवलोकनमें आई थी। फतेहपुर भण्डारमें भी प्रति देखी थी और हमारे संग्रह में भी ११० पत्रोंकी एक अपूर्ण प्रति है । अन्य प्रति आमेर भण्डा में भी प्राप्त है। ( सुमतिमेरु ) रघुवंश टीकाकी उपर्युक्त प्रशस्तिसे इनका गुरुपरम्परा वंशवृक्ष इस प्रकार बनता है । उपाध्याय नंदिविजय I पुण्यकुमार I Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाचक- राजसार 1 धर्म For Private And Personal Use Only उपा. विनयमेरु सुमतिविजय (मानजी ) इनमें से पहले चार गुरु-मुनियोंके सम्बन्धमें तो विशेष वृतान्त नहीं मिला; पर सुमतिविजयजी के गुरु उपाध्याय विनयमेरुकी अनेक रचनाएँ मुझे प्राप्त हुई हैं। विनयमेरुके गुरु भ्राता सुमतिमेरु थे, जिनके रचित 'रत्नकेतु चौपाई' सं. १६६८ वैशाख सुदि १ को रचित प्राप्त हैं । विनयमेरुकी रचनाओं में सबसे पहली 'गुण-सुन्दरी चौपाई' सं. १६६७ आसोज सुदि पूनम फतहपुर में रची गई, जिनकी पथ संख्या १४४ है । इसके बाद 'हंसराज वच्छराज प्रबन्ध' सं. १६६९ लाहोर में रचा गया, तदन्तर 'सुदर्शन चौपाई' सं. १६७८ आजौस सुदि १५ सोधपुर में रचित हमारे संग्रह में हैं । सं. १६७९ में जैसलमेर से संघवी माढगोत्री अर्जुनने शत्रुंजयका संघ निकाला, उसमें विनयमेरु भी साथ थे। उन्होंने इस संघका वर्णन संघपति अर्जुन आग्रहसे माघ सुदि २ को " शत्रुंजय उद्धार " के नामसे बनाया, जिसकी पाँच पत्रोंकी प्रति हमारे संग्रहमें हैं। इसे उसी समयके लगभग श्राविका मानादेने अपने पढने के लिए लिखी हैं । इसमें सं. १६७५ में जो सं. शिवजी रूपजीने चौमुखविहारको प्रतिष्ठा जिनराजसूरि से करवाई थी उसका ऐतिहासिक वर्णन भी है ।
SR No.521730
Book TitleJain_Satyaprakash 1956 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1956
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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