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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विद्ववर्य श्रीसुमतिविजय लेखक : श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा पूज्य जंबूविजयजी महाराजका पत्र मिला कि अमेरिकन, काँग्रेस लायब्रेरी - रेफरेन्स लायब्रेरियन फॉर एशिया सेम्लन, (बॉशिंगटन) के अक्सर वाल्टर एच. माउरूर ( Walter H. Maurer ) सुमतिविजय रचित 'मेघदूत - टीका ' का सम्पादन कर रहे हैं। उन्होंने अपने पत्रोंमें सुमतिविजयकी गुरुपरम्परा, उनके रचित अन्य ग्रंथ आदिके सम्बन्ध में विशेष जानकारी मांगी है। इसलिये प्रस्तुत लेखमें उनकी विद्वत् परम्परा आदिके सम्बन्धमें अपनी जानकारी प्रकाशित कर रहा हूँ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करीब १५-२० वर्ष पूर्व जब मैं बीकानेरके उपाध्याय जयचन्दजीके संग्रहकी हस्तलिखित पुस्तकों की सूची बना रहा था, सुमतिविजय रचित 'रघुवंश - टीका' की प्रति देखने को मिली और उनके गुरुभाई मानजी रचित दो पद्यमय हिन्दी ग्रंथ अवलोकनमें आये । उनके गुरु विनयमेरुकी कई रचनायें हमारे संग्रहमें थी। तभी से मेरी इस विद्वत्परम्परा की जानकारीका प्रारम्भ हुआ। सुमतिविजयने 'मेघदूत टीका 'की प्रशस्ति में अपने गुरुका नाम विनयमेरु और टीकाका नाम 'सुगमान्वया' लिखा है, इसकी रचना विक्रमपुर में हुई, इतना ही उल्लेख किया है। इसमें ग्रंथकी रचना कब हुई, और वे किस गच्छके थे ? इसकी जानकारी इस प्रशस्ति में नहीं दी गई। पर 'रघुवंश - टीका' की प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरुपरम्परा कुछ विस्तार से देते हुए रचनाकालका भी निर्देश किया है। अतः इनकी प्रशस्तिको यहां दिया जा रहा है । “श्रीमन्नन्दिजयाख्यानां पाठकानामभूद् वरः । शिष्यः पुण्यकुमारेति नाम्ना स पुण्यवारिधिः ॥ १ ॥ तस्याभवन् विनेयाथ राजसारास्तु वाचकाः । स जिनोक्तक्रियायुक्ताः वैराग्यरसरञ्जिताः ॥ २ ॥ शिष्यमुखास्तु तेषां तुहेमधर्माः सदाह्वयाः । शिष्टादिष्टाः गुणाभीष्टा बभूव साधुमंडले ॥ ३ ॥ सांप्रतं तद्विनेयाश्व जीयासुः धीधनाः चिरं । पाठका वादिवृन्देन्द्राः श्रीमद्विनयमेवः || ४ | सुमतिविजयेनेव विहिता सुगमान्वया । वृत्तिबलावबोधार्थं तेषां शिष्येण धीमता ॥ ५ ॥ विक्रमाख्ये पुरे रम्येऽभीष्ट देवप्रसादतः । रघुकाव्यस्य टीकेयं कृता पूर्णा मया शुभा ॥ ६ १ निर्विग्रहं-शशि- संवत्सरे फाल्गुनसितैकादश्यां तिथौ संपूर्णा ।” For Private And Personal Use Only
SR No.521730
Book TitleJain_Satyaprakash 1956 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1956
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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